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________________ अनेकान्तिक दृष्टि का विकास ४३ धर्मात्मकता है और उसी अनन्त धर्मात्मक वस्तु में परस्पर विरोधी अनेक धर्म युगल का पाया जाना उसकी अनेकान्तिकता है । विश्व की प्रत्येक वस्तु अनन्त धर्मों का पुंज है। साथ ही प्रत्येक धर्म अपने-अपने विरोधी धर्म युगल के साथ ही वस्तु में रहा हुआ है। पं० वंशीधर के अनुसार अनेकान्त शब्द का अर्थ है-“वस्तु में परस्पर विरोधी अनेक धर्मों का पाया जाना" जिसमें अनेक शब्द का तात्पर्य दो संख्या से है।' ___ इस तरह अनेकान्त शब्द का वास्तविक अर्थ "वस्तु में परस्पर विरोधी दो धर्मों का एक साथ पाया जाना" होता है । यह अर्थ वास्तविक इसलिए है कि परस्पर विरोधिता दो धर्मों में ही सम्भव है; तीन, चार आदि संख्यात, असंख्यात व अनन्त धर्म मिलकर कभी परस्पर विरोधी नहीं होते हैं। इसका कारण यह है कि एक धर्म का विरोधी यदि दूसरा एक धर्म है तो शेष सभी धर्म परस्पर विरोधी उन दो धर्मों से किसी एक धर्म के नियम से अविरोधी हो जायेंगे। उपर्युक्त कथन से यह बात सिद्ध होती है कि वस्तु का अनन्त धर्मात्मक होना एक बात है और उसका (वस्तु का) अनेकान्तात्मक होना दूसरी बात है। इस प्रकार जैन दर्शन की दृष्टि में वस्तु का स्वभाव अनन्त धर्मात्मक एवं अनेकान्तिक है। मात्र यही नहीं जैन आचार्यों ने अचेतन द्रव्यों के साथ ही चेतन द्रव्यों को भी अनन्त धर्मात्मक एवं अनेकान्तिक बताया है। उनके अनुसार चैतन्य स्वरूप आत्मा में भी अनन्त धर्म, अनन्त गुण एवं अनन्त पर्याय पाये जाते हैं। डॉ० चन्द्रधर शर्मा के शब्दों में, पुद्गल और जीव पृथक् एवं स्वतन्त्र सत्ताएँ हैं असंख्य पुद्गल अणु और असंख्य वैयक्तिक आत्मायें हैं जो पृथक एवं स्वतन्त्र रूप से सत् हैं और प्रत्येक अण और प्रत्येक आत्मा के अपने संभावित असंख्य आयाम हैं । ३ यद्यपि यहाँ डॉ० १. श्रमणोपासक, पृ० ७०२. वर्ष ६, अंक १६, फरवरी १९६९ । २. वही। ३. Matter (pudgala) and spirit (jiva) are regarded as separate and independent realities. There are innumerable material atoms and innumerable individuals souls which are all separately and independently real And each atoms and each soul possesses innumerable Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002082
Book TitleSyadvada aur Saptabhanginay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhikhariram Yadav
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size11 MB
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