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________________ स्याद्वाद : एक सापेक्षिक दृष्टि अनेकान्तात्मक स्वरूप का प्रतिपादक होने से स्याद्वाद अनेकान्त का वाचक है और अनेकान्त स्याद्वाद का वाच्य है। यदि इसे इस प्रकार भी कहा जाय तो भी ठीक ही है कि अनेकान्त साध्य है और स्याद्वाद उसका साधक । वस्तुतः स्याद्वाद सिद्धान्त अपनी सापेक्ष शैली के द्वारा वस्तु के अनन्त धर्मों का सूचन करते हुए अनेकान्त की सिद्धि करता है। स्वामी समन्तभद्र ने स्याद्वाद का स्वरूप स्पष्ट करते हुए कहा है कि "किञ्चित्, कथञ्चित्, कथञ्चन आदि शब्दों से जिसका विधान होता है तथा जो सर्वथा एकान्त को त्याग कर (अनेकान्त को स्वीकार कर) सप्तभङ्गीनय से विवक्षित (उपादेय) का विधायक और अविवक्षितों (शेषधर्मों) का निषेधक (सन्मात्रसूचक) है, वह स्याद्वाद है। स्याद्वाद के बिना हेय और उपादेय की व्यवस्था नहीं बनती।' जैन आचार्यों की यह भी मान्यता है कि प्रत्येक वस्तु में अनेक भावात्मक (स्वीकारात्मक) धर्मों के साथ अनेक अभावात्मक (निषेधात्मक) धर्म भी विद्यमान रहते हैं। मात्र यही नहीं, उसमें अनेक विरोधी धर्म युगल भी उपस्थित रहते हैं, किन्तु अपेक्षा भेद से उनमें किसी प्रकार का विरोध नहीं होता; अर्थात् प्रत्येक वस्तु में भावात्मक (स्वीकारात्मक), अभावात्मक (निषेधात्मक) और विरोधी गुण विद्यमान रहते हैं। प्रत्येक धर्म स्व-रूप से विद्यमान रहता है और पर-रूप से अविद्यमान । यदि उसे पर-रूप से भी भावरूप स्वीकार किया जाय तो एक वस्तु के सद्भाव में सम्पूर्ण वस्तुओं का सद्भाव मानना पड़ेगा और यदि उसे स्व-रूप से भी अभाव रूप माना जाय तो वस्तु स्वभाव रहित हो जायगी; जो कि वस्तु-स्वरूप से सर्वथा विपरीत है । वस्तु में परस्पर विरोधी-अविरोधी अनेक धर्मों या गुणों की विद्यमानता से जगत् का प्रत्येक पदार्थ अनेक धर्मात्मक है। जैसे एक ही जीव-तत्त्व में दर्शन, ज्ञान, सुख, वीर्य, श्रद्धा, मदुता आदि अनेक गुण नित्यत्व, अनित्यत्व, सत्त्व, असत्त्व, आदि विरोधी धर्मयुगल हैं और एक १. स्याद्वादः सर्वथैकान्तत्यागात् किंवृत्तचि द्विधिः । सप्तभङ्गनयापेक्षो हेयादेयविशेषकः ॥ -आप्तमीमांसा, श्लो० १०४ । २. सर्वमस्ति स्वरूपेण पररूपेण नास्ति च । अन्यथा सर्वसत्त्वं स्यात् स्वरूपस्याप्यसंभवः ॥ -प्रमाणमीमांसा, सू. १६ की टीका । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002082
Book TitleSyadvada aur Saptabhanginay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhikhariram Yadav
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size11 MB
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