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________________ ५२ जैन एवं बौद्ध शिक्षा-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन जातक _ 'जातक' 'खुद्दकनिकाय' का दसवाँ भाग है। जातक में भगवान् बुद्ध के पूर्व जन्म से सम्बन्धित कथाएँ संकलित हैं। 'जातक' शब्द का अर्थ ही होता है- जात अर्थात् जन्म-सम्बन्धी। 'जातकों' की कितनी संख्या है, इस विषय में अभी विद्वत्जन किसी निश्चित लक्ष्य पर नहीं पहुँच पाये हैं। लंका, वर्मा और स्याम में प्रचलित परम्परा के अनुसार 'जातक' ५५० हैं, किन्तु भारतीय विद्वान् डॉ० भरत सिंह उपाध्याय का मानना है कि वर्तमान में ५४७ जातक कहानियाँ पायी जाती हैं।१०० फिर भी यह स्पष्ट रूप से नहीं कहा जा सकता कि जातकों की निश्चित संख्या क्या है? क्योंकि कई जातक कथाएँ "सुत्तपिटक', 'विनयपिटक' तथा अन्य पालि ग्रन्थों में भी पायी गयी हैं।१०१ भदन्त आनन्द कौसल्यायन का कहना है कि यदि कुल कहानियाँ गिनी जाएँ तो जातक में करीब तीन हजार कहानियाँ पायी जाती हैं।१०२ 'जातकों' के संकलन के विषय में रायस् डेविस का कहना है कि इनका संकलन मध्य देश में प्राचीन जन-कथाओं के आधार पर हुआ है।१०३ 'जातक' मूलत: पालि भाषा में निबद्ध है, किन्तु अन्य भाषाओं में भी इसका अनुवाद हुआ है, यथा- भदन्त आनन्द कौसल्यायन ने जातक का हिन्दी में अनुवाद किया है। ईशानचन्द्र घोष ने बंगला-भाषा में अनुवाद किया है। अंग्रेजी में कांबल द्वारा सम्पादित अनुवाद प्राप्त होता है। इसी प्रकार रोमन, सिंहली, यूरोपीय आदि भाषाओं में भी अनुवादित किया गया है।१०४ प्रत्येक ‘जातक' को पाँच भागों में बांटा गया है- (क) पच्चुप्पन्नवत्थु, (ख) अतीतवत्थु, (ग) गाथा, (घ) वैय्याकरण या अत्थवण्णना, (च) समोधन। 'जातक' केवल कहानियों का संग्रहमात्र नहीं है बल्कि इसमें बुद्धकालीन सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक आदि विषयों का भी समावेश है। जातक के अध्ययन से तत्कालीन शिक्षा पर प्रकाश पड़ता है, यथा - ‘दरीमुख जातक' में मगध के राजकुमारों की तक्षशिला में शिक्षा का वर्णन है। इस में शिक्षा के विधान, पाठ्यविषय, अध्ययन विषय, शिक्षक तथा शिक्षार्थी के व्यावहारिक तथा सैद्धान्तिक पक्ष, निवासस्थान, भोजन, अनुशासन आदि पर भी प्रकाश डाला गया है। मिलिन्दप्रश्न 'मिलिन्दप्रश्न' पूर्व बुद्धघोष युग (१०० ई०पू० से ४०० ई० तक) का सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। मिलिन्द शब्द 'मेनाण्डर' नाम का ही रूपान्तरण है। मेनाण्डर द्वारा पूछे गये प्रश्नों का नागसेन द्वारा जो उत्तर दिया गया, उन्हीं संवादों को 'मिलिन्दप्रश्न' में संकलित किया गया है। 'मिलिन्दप्रश्न' की रचनाकाल के विषय में विद्वानों के विचारों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002081
Book TitleJain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size10 MB
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