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________________ शिक्षा-दर्शन : एक सामान्य परिचय सभी सूक्ष्म पदार्थ हथेली पर आँवले की तरह प्रत्यक्ष दिखाई पड़ते हैं। दर्शन के लिए हमें दोनों प्रकार के चक्षुओं की अपेक्षा होती है। स्थूल तत्त्वों को स्थूल नेत्र से तथा सूक्ष्म तत्त्वों को सूक्ष्म नेत्र से हम देखते हैं। यही कारण है कि उपनिषदों ने दृश धातु का प्रयोग किया है और यही भाव भारतीय दर्शन के 'दर्शन' शब्द में भी है। बिना चाक्षुष प्रत्यक्ष के किसी भी तत्त्व का ज्ञान निश्चित रूप से नहीं हो सकता। २८ दर्शन के लिए अंग्रेजी में 'फिलॉसफी' शब्द का प्रयोग किया जाता है जो ग्रीक भाषा के दो शब्दों से मिलकर बना है- फिलॉस (Philos) और सॉफिया (Sophia) फिलॉस का अर्थ होता है प्रेम (Love) तथा सॉफिया का अर्थ होता है बुद्धि (Wisdom)। अत: दोनों शब्दों का संयुक्त अर्थ होता है- बुद्धि का प्रेम या बुद्धि (ज्ञान) के प्रति प्रेम (Love of Wisdom)। यहाँ बुद्धि शब्द से सामान्य विचारशक्ति या प्राकृतिक बुद्धि न ग्रहण कर विवेकयुक्त बुद्धि ग्रहण किया जाता है। डॉ० राधाकृष्णन् ने दर्शन को परिभाषित करते हुए कहा है- 'दर्शनशास्त्र यथार्थ के स्वरूप का तार्किक विवेचन है।' २९ इसी प्रकार दत्ता एवं चटर्जी ने युक्तिपूर्वक तत्त्वज्ञान प्राप्त करने के प्रयत्न को दर्शन कहा है।३° पं० विजयमुनिजी ने कहा है'दर्शन सम्पूर्ण विश्व और जीवन की व्याख्या तथा मूल्य निर्धारण करने का प्रयास है। ३१ वस्तुत: पदार्थ के यथार्थ स्वरूप का ज्ञान प्राप्त करना ही दर्शन है। दर्शन और जीवन ___मानव के सामने प्राय: यह प्रश्न उपस्थित होता है कि जीवन के साथ दर्शन का क्या सम्बन्ध है? जीवन और दर्शन एक-दूसरे के अत्यन्त समीप हैं। चिन्तन मानव का स्वभाव है और जब तक यह स्वभाव बना रहेगा तब तक मानव जीवन में दर्शन का अस्तित्व बना रहेगा। चिन्तन मानव के जीवन से दूर हो जाये यह कभी भी सम्भव नहीं है। जहाँ चिन्तन है वहाँ दर्शन अवश्य रहेगा, क्योंकि जब जीवन है तो जीवन का कुछ न कुछ दर्शन भी होगा। जीवन में कुछ ऐसे प्रश्न उपस्थित होते हैं, यथा- यह जीवन क्या है? इसका स्वरूप क्या है? इसका आदि क्या है? मृत्यु क्या है? क्या मृत्यु कष्टदायक है? क्या मृत्यु का अन्त है? क्या उससे बचा जा सकता है? आदि-आदि प्रश्नों पर विचार करना ही पड़ता है। इन प्रश्नों से बड़े-बूढ़े ही नहीं बल्कि छोटा बच्चा भी परेशान रहता है। वह अपने परिवार में मृत्यु की घटना देख कर सहज ही पूछ बैठता है- मृत्यु क्या है? क्या दादा फिर नहीं मिलेंगे? आदि। ये प्रश्न उतने ही सत्य हैं जितना सत्य जीवन। फिर इन प्रश्नों से हम नाता कैसे तोड़ सकते हैं? दर्शन हमें जीवन के प्रति उपयुक्त दृष्टिकोण अपनाने की सलाह देता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002081
Book TitleJain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size10 MB
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