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________________ २०६ जैन एवं बौद्ध शिक्षा-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन (४) विवेक- सदोष ज्ञात होने पर ग्रहण किये हुए भोजन-पान का त्याग कर देना विवेक है। (५) व्युत्सर्ग- गमनागमन करते समय, निद्रावस्था में सावध स्वप्न आने तथा नदी को नौका आदि से पार करने पर कायोत्सर्ग करना अर्थात् खड़े होकर ध्यान करना व्युत्सर्ग प्रायश्चित्त है। (६) तप- प्रमाद आदि के कारण किये गये अनाचार पर गुरु द्वारा दिये गये तप को स्वीकार करना तप प्रायश्चित है। इसका समय छ: मास का होता है। (७) छेद- अनेक व्रतों की विराधना करनेवाले और बिना कारण अपवाद मार्ग का सेवन करनेवाले भिक्षु या भिक्षुणी का दीक्षा-काल कम करना अर्थात् वरीयता कम करना छेद प्रायश्चित्त है। (८) मूल- जान-बूझकर किसी पंचेन्द्रिय प्राणी का घात तथा मृषावाद का सेवन करने पर पूर्व दीक्षा का समूह छेदन करना मूल प्रायश्चित्त है। इस दण्ड के अन्तर्गत साधु-साध्वी को फिर से नवीन दीक्षा लेनी पड़ती है। (९) अनवस्थाप्य- घोर पाप करने पर जिसकी शुद्धि मूल प्रायश्चित्त से भी सम्भव न हो, ऐसी स्थिति में वापस गृहस्थ वेश धारण करके पुन: नवीन दीक्षा लेना अनवस्थाप्य प्रायश्चित्त है। (१०) पारांजिक- ऐसा पाप जिसकी शुद्धि अनवस्थाप्य प्रायश्चित्त से भी सम्भव न हो। ऐसे घोर पाप करनेवाले को कम से कम एक वर्ष तक तथा ज्यादा से ज्यादा १२ वर्षों तक गृहस्थ वेश धारण कराके श्रमण के सभी व्रतों का पालन करने के पश्चात् जो नवीन दीक्षा ली जाती है, वह पारांजिक प्रायश्चित्त है। यह दण्ड की अन्तिम अवस्था है। 'तत्त्वार्थसूत्र' में प्रायश्चित्त के नौ भेदों का वर्णन मिलता है।३६ वहाँ मूल, अनवस्थाप्य और पारांजिक के स्थान पर परिहार एवं उपस्थापना- इन दो प्रायश्चित्तों का उल्लेख मिलता है। दिगम्बर साहित्य में नौ प्रायश्चित्तों का ही उल्लेख है।३७ जैन दण्ड विधान में यदि कोई शिक्षार्थी (भिक्षु) एक ही नियम का बार-बार अतिक्रमण करता है तो उसका प्रायश्चित्त निरन्तर गुरुता को प्राप्त करता जाता है, यथा - जैनधर्म में शिक्षार्थी को दिन में एक बार भिक्षा के लिए जाने का विधान था। यदि वह एक से अधिक बार भिक्षा को जाता था तो उसका दण्ड क्रमश: बढ़ता ही जाता था,३८ जैसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002081
Book TitleJain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size10 MB
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