SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम अध्याय शिक्षा-दर्शन : एक सामान्य परिचय मनुष्य द्वारा प्राप्त ज्ञान को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचाने के लिए जिस विधि या प्रक्रिया का सहारा लिया जाता है, वह 'शिक्षा' है। शिक्षा के अभाव में मनुष्य को बिना सींग और पूंछ के जानवर तक की उपमायें दी गयी हैं। कहा भी गया है'ज्ञानेन हीना: पशुभिः समाना:।' शिक्षा का अभाव ही व्यक्ति और समाज में व्याप्त अन्धकार का मूल कारण है। शिक्षा ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा मनुष्य की जन्मजात शक्तियों का विकास होता है, उसके ज्ञान और कला-कौशल में वृद्धि तथा व्यवहार में परिवर्तन होता है। शिक्षा के कारण ही मानव में विचारशीलता, बुद्धिमत्ता, सदाचारित्व आदि गुण देखने को मिलते हैं। शिक्षा के द्वारा ही मानव सभ्य एवं सुसंस्कृत बनता है। अन्य प्राणी भी प्रशिक्षित होते हैं लेकिन उनमें विवेक का अभाव होता है। शिक्षा मानव में विवेक को जाग्रत एवं समृद्ध करती है। सही अर्थों में शिक्षा प्रकाश का स्रोत है जो जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सद्मार्ग को प्रकाशित करती है। शिक्षा के लिए ज्ञान, विद्या आदि शब्दों के प्रयोग भी किये जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि ज्ञान मनुष्य का तीसरा नेत्र है जो उसे तत्त्वों के मूल को समझने में समर्थ बनाता है तथा सत्-कार्यों में प्रवृत्त करता है। विद्या से जिस ज्योति की प्राप्ति होती है उससे व्यक्ति संशयों का उच्छेद करता है, कठिनाइयों को दूर भगाता है और जीवन के वास्तविक महत्त्व को समझने के योग्य बनता है। जिसे ज्ञान की ज्योति उपलब्ध नहीं होती वह अन्धे के समान होता है। विद्या को माता, पिता तथा पत्नी के समान बताते हुये कहा गया है- विद्या माता की भाँति हमारी रक्षा करती है, पिता की भाँति हित-कार्यों में लगाती है तथा पत्नी की भाँति खेदों को दूर कर प्रसन्नता प्रदान करती है। २ 'इसिभासियाई' में कहा गया है- 'वही विद्या महाविद्या है, वही विद्या समस्त विद्याओं में उत्तम है जिसकी साधना करने से समस्त दुःखों से मुक्ति मिलती है। विद्या दुःख-मोचनी है। जैन आचार्यों ने उसी विद्या को उत्तम माना है जिसके द्वारा दुःखों से मुक्ति हो और आत्मा के शुद्ध स्वरूप का साक्षात्कार हो। ४ 'आदिपुराण' में शिक्षा (विद्या) की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए आचार्य जिनसेन ने कहा है- 'विद्या ही मनुष्य को यश देनेवाली है, विद्या ही आत्मकल्याण करनेवाली है, विद्या ही चिन्तामणि है, विद्या ही धर्म, अर्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002081
Book TitleJain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy