SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११२ जैन एवं बौद्ध शिक्षा दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन द्वारों का निर्देश किया गया है जिसे शास्त्रों में अनुयोगद्वार कहा गया है । अनुयोगद्वार का अर्थ बताते हुए पं० सुखलाल संघवी ने कहा है 'अनुयोग का अर्थ होता है व्याख्या या विवरण और द्वार अर्थात् प्रश्न। अतः विचारणा द्वार का मतलब हुआ प्रश्न। प्रश्न ही वस्तु में प्रवेश करने के अर्थात् विचारणा द्वारा उसकी तह तक पहुँचने के द्वार हैं। २७ कोई भी व्यक्ति किसी नयी वस्तु को देखता है या सुनता है तब उसकी जिज्ञासा वृत्ति जाग उठती है तथा वह अदृष्टपूर्व या अश्रुतपूर्व वस्तु के सम्बन्ध में अनेक प्रश्न करने लगता है, यथा- उस वस्तु का रंग-रूप, उसके मालिक, बनाने के उपाय आदि । उन प्रश्नों का उत्तर प्राप्त करके वह अपने ज्ञान की वृद्धि करता है । इसी प्रकार अन्तर्दृष्टि युक्त व्यक्ति भी मोक्षमार्ग को सुनकर या हेय - उपादेय आध्यात्मिक तत्त्व को सुनकर तत्सम्बन्धी विविध प्रश्नों के द्वारा अपना ज्ञान बढ़ाता है। अतः निर्देश, स्वामित्व आदि २८ प्रश्नों के द्वारा सम्यक् - दर्शन पर संक्षेप में विचार किया जाता है: (१) निर्देश - वस्तु के नाम का कथन करना । यह सम्यक् - दर्शन का स्वरूप है । २९ (२) स्वामित्व - वस्तु के स्वामी का कथन करना । यथा सम्यक् दर्शन का अधिकारी जीव है । ३० (३) साधन (कारण) - जिन साधनों से वस्तु बनी है उनका कथन करना, यथासम्यक् - दर्शन के अन्तरंग एवं बहिरंग कारणों को बताना । ३१ अधिकरण- वस्तु के आधार का कथन करना, यथा सम्यक् दर्शन का आधार जीव है क्योंकि वह उसका परिणाम होने के कारण उसी में निहित है । ३२ (५) स्थिति — वस्तु के काल का कथन करना, यथा- तीनों प्रकार के सम्यक्त्व अमुक समय में उत्पन्न होते हैं । ३३ (४) ३४ (६) विधान - वस्तु के भेदों का कथन करना, यथा- सम्यक्त्व के प्रकार को बताना । सत्— अस्तित्व का कथन करके समझाना, यथा- सम्यक्त्व गुण सत्तारूप से सभी जीवों में विद्यमान हैं । ३५ (७) (८) संख्या - भेदों की गणना करके समझाना, यथा- सम्यक्त्व की गिनती उसे प्राप्त करनेवालों की संख्या पर निर्भर है। ३६ (९) क्षेत्र — वर्तमान काल विषयक निवास को ध्यान में रखकर समझाना, यथासम्यक्-दर्शन का क्षेत्र सम्पूर्ण लोकाकाश नहीं किन्तु उसका असंख्यातवाँ भाग है । ३ ३७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002081
Book TitleJain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy