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________________ चौबे, श्री राकेश सिंह एवं अन्य कर्मचारीगण के प्रति अपना आभार प्रकट करता हूँ जिनलोगों से हमेशा अकादमीय सहयोग मिलता रहता है। विशेषकर अपनी धर्मपत्नी डॉ० सुधा जैन जो पार्श्वनाथ विद्यापीठ में मेरी अकादमीय सहयोगी हैं, के प्रति आभार ज्ञापित करके मैं उन्हें शर्मिन्दा नहीं करना चाहता क्योंकि उन्होंने घर एवं घर से बाहर सदा मेरा साथ देकर मुझे गौरवान्वित किया है। मित्रवर डॉ० जगतराम भट्टाचार्य ( उपाचार्य, प्राकृत भाषा विभाग, जैन विश्व भारती, लाडनूं), डॉ० रज्जन कुमार (उपाचार्य, दर्शन विभाग, रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय, बरेली), डॉ० सुनीता कुमारी (उपाचार्य, एस०एम० एस० स्नातकोत्तर महाविद्यालय, रूड़की), डॉ० जयन्त कुमार (प्राचार्य, आदर्श विद्या मंदिर, कुचामन सिटी) के प्रति आभार प्रकट करता हूँ जिनकी मित्रता ने मुझे हमेशा बल प्रदान किया है। अपने पूज्य माता-पिता स्व० श्रीमती शान्ति सिन्हा एवं डॉ०बशिष्ठ नारायण सिन्हा का अत्यन्त ऋणी हूँ जिनलोगों ने मुझे प्यार ही नहीं बल्कि गुरु रूप में विद्या और ज्ञान भी प्रदान किया है। पूज्य चाचीजी-चाचाजी श्रीमती शान्ति सिंह एवं श्री रवीन्द्र नाथ सिंह जो मेरे द्वितीय माता-पिता हैं और जिनलोगों ने सदा मुझे अध्ययनरत रहने में प्रोत्साहित किया है, के वात्सल्य एवं आशीर्वाद के लिये सदैव ऋणी हूँ। पूज्य भ्राता प्रोफेसर प्रभात कुमार सिंह (अंग्रेजी विभाग, म०गा० काशी विद्यापीठ, वाराणसी) जो शैक्षणिक जगत में मुझे प्रोत्साहित करते रहे हैं और जिनकी कर्मठता सदा मुझे प्रेरित करती रही है, के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ। आदरणीय मामाजी डॉ० शशिरंजन सिंह के प्रति अपना अभार प्रकट करता हूँ जिन्होंने हमेशा स्नेह एवं सहयोग प्रदान किया है। अग्रज स्व० डॉ० संजय कुमार, डॉ० अजय कुमार एवं श्री धनंजय कुमार तथा परिवार के अन्य सदस्यों के प्रति हृदय से आभार प्रकट करता हूँ जिनलोगों ने पारिवारिक कार्यों में मुझे सहयोग देकर अध्ययन के लिये सदा प्रोत्साहित किया है। इसे स्वीकार करने में मुझे कोई हिचक नहीं है कि इस पुस्तक में जो कुछ भी है वह सन्तों, गुरुजनों, विद्वज्जनों का है, जिन्हें मैंने अपनी अल्पमति के आधार पर सुनियोजित करने का प्रयास किया है। अत: इस कार्य में यदि कोई दोष दिखाई पड़ता है तो वह निश्चित ही मेरा है और इसके लिये उदारमना विद्वानों से मैं क्षमाप्रार्थी हूँ। अन्त में सुन्दर अक्षर-सज्जा हेतु सरिता कम्प्यूटर व स्वच्छ मुद्रण के लिये वर्द्धमान मुद्रणालय को धन्यवाद देता हूँ। ११.०४.२००३ रामनवमी विजय कुमार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002081
Book TitleJain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size10 MB
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