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________________ XXXII कौमुदीमित्रानन्दरूपकम् साधारणत: प्रत्येक रूपक के भरतवाक्य में उपसंहत होता है जिसे रूपककार ने यहाँ सिद्धाधिनाथ के वचन में प्रस्तुत किया है उपनतमित्रकलत्रः सन्तप्तारामचन्द्रकरविशदाम् । आसाद्य यशोलक्ष्मी परां स्वतन्त्रश्चिरं भूयाः।। सन्ध्यङ्ग-विवेक उक्त क्रमिक पाँच सन्धियों के क्रमशः १२, १३, १३, १३ और १४ अङ्ग माने गये हैं। इनमें मुखसन्धि के १२ अङ्गों के नाम हैं- उपक्षेप, परिकर, परिन्यास, समाहिति, उद्भेद, करण, विलोभन, भेदन, प्रापण, युक्ति, विधान और परिभावना।२ अब इस रूपक की मुखसन्धि के अर्न्तगत इन १२ अङ्गों का परिचय देना है। किन्तु उससे पूर्व इन अङ्गों के क्रम के विषय में प्रकरणकार रामचन्द्र का नाट्यदर्पण में दिया गया वक्तव्य ध्यान देने योग्य है उपक्षेप-परिकर-परिन्यासानां यथोद्देशक्रममादावेव, समाधानस्य तु रचनावशान्मध्यैकदेश एव, उद्रेदकरणयोस्तु उपान्त्ये निबन्धः।३ इनमें भी उपक्षेप, परिकर, परिन्यास, समाधान (अथवा समाहिति), उद्भेद और युक्ति- ये छ: अङ्ग तो मुखसन्धि में अवश्य होने चाहिए, अन्य अङ्गों का समावेश यथासम्भव सभी अन्य सन्धियों में भी सम्भव है। ऐसी स्थिति में सन्ध्यङ्गों की पूर्वोक्त संख्या में ह्रास-वृद्धि भी सम्भव है। ____ इस सन्दर्भ में नाट्यदर्पण में विस्तृत विवेचन है, किन्तु उन सबका इसमें विवेचन करना सम्भव नहीं है। अब इन सन्ध्यङ्गों का सोदाहरण विवरण प्रस्तुत है(१) उपक्षेप रामचन्द्र ने इसका लक्षण इस प्रकार किया है- बीजस्योप्तिरुपक्षेपः।५ १. कौ०मि०, १०/१८। २ ना०द०, पृ० १०५। ३. वहीं, पृ० १०६। ४. ना०द०, पृ० १०६। ५. वहीं, पृ० १०८। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002080
Book TitleKaumudimitranandrupakam
Original Sutra AuthorRamchandrasuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Culture
File Size8 MB
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