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________________ कीर्तिमान स्थापित किये हैं। किन्तु यहाँ उनमें से नमूने के तौर पर रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी और रवींद्रनाथ टैगोर तथा योगी अरविंद के संबंध में ही संक्षिप्त टिप्पणियाँ करेंगे: १) रामकृष्ण की साधना पद्धति :- रामकृष्ण परमहंस एक बड़े साधक थे। उन्होंने भक्ति के अन्तर्गत ही प्रेमयोग का समावेश किया था। भक्तियोग को ही जीवन का माध्यम बनाया। भक्ति के तीन पहलू३३ सात्त्विक, राजसिक और तामसिक के अन्तर्गत साधक के गुणों-अवगुणों का वर्णन करते हुए बताया है कि सात्त्विक भक्ति के द्वारा ही साधक अपने साध्य को सिद्ध करता है। रामकृष्ण परमहंस ने साधना के सात सोपानों का वर्णन किया है :- १) साधु संग, २) श्रद्धा, ३) निष्ठा, ४) भक्ति, ५) भाव, ६) महाभाव और ७) प्रेम। ये सातों ही भक्ति के अंग हैं। इन्हें दो विभागों में विभाजित किया गया है। १) विधि भक्ति और २) राग भक्ति, इसे परमभक्ति भी कहते हैं। ___ इनका दूसरा साधना मार्ग था - कर्मयोग। निष्काम भाव से साधक (गृहस्थ) द्वारा किये गये कर्म ही कर्मयोग हैं। ईश्वर को समर्पित होना ही कर्मयोग है। साधक और ईश्वर में साधन-साध्य भाव प्रस्फुटित होता है। अतः रामकृष्ण ने भक्तियोग और कर्मयोग की साधना ही जीवन में श्रेष्ठ मानी। २) स्वामी विवेकानंद की साधना पद्धति :- स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे। गुरुमिलन से इनका अभिमान विगलित हो गया और वे बड़े योगी बन गये। इनकी आध्यात्मिक साधना का मूलस्रोत मानव सेवा थी। ईश्वर दर्शन का परम साधन मनुष्य सेवा को ही माना था क्योंकि उन्होंने ज्ञान-योग, भक्तियोग, कर्मयोग, प्रेमयोग और वैराग्य अर्थात् राजयोग का अपूर्व समन्वय मानव सेवा द्वारा ही ईश्वर-प्राप्ति का अपूर्व साधन माना। ये ही इनके पंच साधनासूत्र हैं, जिनका उत्तरोत्तर एक दूसरे के साथ घनिष्ठ संबंध है। विवेकानंद ने धर्म के चरम लक्ष्य की प्राप्ति के साधनों को ही योग माना है। विभिन्न प्रकृतियों और स्वभावों के अनुरूप योग के विभिन्न प्रकार हैं। विज्ञान और धर्म में केवल पद्धति का भेद है। अतः इनके मन्तव्यानुसार योग का भावार्थ है पूर्णत्व प्राप्त करके आत्मा की मुक्ति पाना (साधना) उसका उपाय योग है।३४ ३) महात्मा गांधी की साधना पद्धति (१८६९-१९४८):- गांधी साधक, योगी और भक्त थे। उन्होंने परम शुभ सत्यान्वेषण में सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्यादि को ही ध्यान परंपरा में साधना का स्वरूप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002078
Book TitleJain Sadhna Paddhati me Dhyana yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1991
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Philosophy
File Size10 MB
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