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________________ मोक्ष पाने के अति निकट काल में अंतिम शैलेशी अवस्था के समय योगनिरोध (मनोयोग का निग्रह - वचनयोगनिग्रह - काय योगनिग्रह) करता है और २. अन्यों को स्वस्थानुसार होता है - अन्य सब महात्माओं को धर्मध्यान की प्राप्ति का क्रम योग और काल के आश्रय से उनकी समाधि के अनुसार होता है। इनका स्वरूप आगे बतायेंगे। ध्यान का विषय ध्येय ध्यान करने योग्य वस्तु को ध्येय कहते हैं। ध्येय वस्तु चेतन अचेतन दोनों प्रकार की होती है। चेतन जीव द्रव्य है और अचेतन धर्म, अधर्म, आकाश, काल, ओर पुद्गल आदि पांच द्रव्य हैं। अरिहंत और सिद्ध भी ध्येय वस्तु ही हैं। बारह गुण सम्पन्न अरिहंत और सिद्ध का ही ध्यान करना चाहिये। इसके अतिरिक्त बारह अनुप्रेक्षाएँ, उपशम और क्षपक श्रेणी की आरोहण विधि, सभी प्रकार की वर्गणाएं, पाँच प्रकार का संसार, प्रकृति, स्थिति, अनुभाग, प्रदेश, ये सब ध्यान करने योग्य (ध्येय) होते हैं।६६ ध्याता का स्वरूप ___ ध्याता - मुमुक्षु हो (मोक्ष का इच्छुक हो), संसार से विरक्त हो, क्षोभरहित शांत चित्त हो, वशी हो, (मन वश में हो), स्थिर हो, जिताक्ष (जितेन्द्रिय) हो, संवृत (संवरयुक्त) हो धीर, गंभीर हो, गुणग्राही हो, आसन्न भव्य हो, कामभोग एवं विषय विकारों से विरक्त हो, समस्त द्रव्य एवं भाव परिग्रह का त्यागी हो, जीवादि पदार्थों का ज्ञाता हो, प्रवज्या धारी हो, तप संयम से सम्पन्न हो, प्रमादरहित हो, आर्तरौद्रध्यान का त्यागी हो, इहलोक परलोक दोनों की अपेक्षा से रहित हो, आनंदी हो, परीषह विजेता हो, क्रियायोग सम्पन्न हो, ध्यानयोग में सतत उद्यमी हो, अशुभ लेश्या एवं अशुभ भावनाओं से रहित हो, उत्तम संहननवाला हो, धैर्य एवं बलशाली हो, चौदह, दस और नौ पूर्व का ज्ञाता हो, सम्यग्दृष्टि हो, इन सभी गुणों से सम्पन्न ध्याता ही ध्यान करने योग्य होता है।६७ अनुप्रेक्षा का स्वरूप ध्यान योग में स्थिर रहने के लिये साधक को ध्यानान्तरावस्था में धर्मध्यान और शुक्लध्यान की चार-चार अनुप्रेक्षाओं का आधार लिया जाता है। वे अनुप्रेक्षाएँ क्रमशः इस प्रकार हैं - धर्मध्यान की अनुप्रेक्षाएँ - अनित्यानुप्रेक्षा, अशरणानुप्रेक्षा, संसारानुप्रेक्षा ओर एकत्वानुप्रेक्षा। इन चारों के क्रम में कहीं- कहीं भिन्नता नजर आती है। शुक्लध्यान की चार अनुप्रेक्षायें - अनन्तवर्तितानुप्रेक्षा, विपरिणामानुप्रेक्षा, अशुभानुप्रेक्षा और अपायानुप्रेक्षा। इन अनुप्रेक्षाओं का स्वरूप आगे बताया जायेगा। शुद्ध लेश्या का स्वरूप ___ ध्यान योग में प्रशस्त तीन लेश्याएं होती हैं - तेजो, पद्म ओर शुक्ल लेश्या। यों २७० जैन साधना का स्वरूप और उसमें ध्यान का महत्त्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002078
Book TitleJain Sadhna Paddhati me Dhyana yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1991
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Philosophy
File Size10 MB
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