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________________ प्रकाशक की कलम से परम पूजनीय आचार्य प्रवर श्री आनन्दऋषिजी महाराज का संपूर्ण जीवन अध्ययन, अध्यापन, चिंतन-मनन से सराबोर रहा है। ज्ञान-साधना यही आपके जीवन का प्रधान अंग रहा है। 'नाणस्स सव्वस्स पगासणाए' यह भगवान महावीर का आदेश आचार्य प्रवर के जीवन का आदर्श कार्य रहा है। धार्मिक परीक्षा बोर्ड, रत्न जैन पुस्तकालय, शिक्षा संस्थाएँ, आध्यात्मिक प्रवचनों एवं ग्रंथों का प्रकाशन आदि की प्रस्थापना आपका आन्दोलन रहा है। यह आपकी अध्ययनशीलता का दूरगामी सुन्दर परिपाक है। स्वयं चिंतन-मनन, अध्ययन रूप महोदधि में डुबकी लगाकर ज्ञान-मुक्ती का लाभ उठाने से आपका समाधान नहीं हुवा। अपने शिष्य-शिष्याएँ, संपर्क में आनेवाले भी इस ज्ञान-साधना में सदा आगे बढते रहें यह भी आपकी उत्कंठा रही है। यही कारण है कि इस उम्र में भी आप प्रतिदिन मुमुक्षुओं को ज्ञान की संथा देते रहते हैं, मार्गदर्शन करते हैं। आपके साधु-साध्वियाँ ज्ञानार्जन के लिए सतत लालायित रहते हैं। इस क्षेत्र में अपनी विशेषताएं प्रस्थापित करने में उनके प्रयास जारी रहते हैं। आचार्यश्री की प्रेरणा से अनेकों साधु-साध्वियां धार्मिक एवं विद्यापीठीय परीक्षाओं में प्राविण्य प्राप्त कर रहे हैं। साध्वी प्रियदर्शनाजी भी इन्ही जिज्ञासुओं में अपना विशिष्ट स्थान रखती हैं। आपकी गुरुजी जैन शासन-चंद्रिका स्व. पू. उज्ज्वलकुमारीजी भी एक अध्ययनरत विदुषी थीं। उनकी विद्वत्ता की प्रसादी का लाभ स्वयं महात्मा गांधीजी ने भी उठाया था। महासतीजी की अनेक शिष्याएं पीएच. डी. भी कर चुकी हैं। आचार्य भगवन् की प्रेरणा, महासतीजी का आदर्श तथा गुरु-भगिनी एवं अग्रजा साध्वी प्रमोदसुधाजी के उत्साह का संबल साध्वी प्रियदर्शना को प्रगति करने में बल देते रहे। इन्हीं का सुपरिणाम है पीएच. डी. के लिए प्रस्तुत यह शोध प्रबन्ध। 'जैन साधना-पद्धति में ध्यान योग' पर संशोधन करने की उत्कटता साध्वीजी के मानस में जागृत हुई और डॉ. अ. दा. बतरा जैसे विद्वान पंडित के मार्गदर्शन की सुसंधि का उत्साहवर्धन लेकर विभिन्न दर्शनों, आगमों, टीकाओं, ग्रंथों आदि का मन्थन शुरू हुवा। जो भी सन्दर्भ स्थान दृष्टिगत हुए उनका अनुशीलन करके टिप्पणियाँ तैयार होती गयीं। केवल तान्त्रिक एवं तात्त्विक ज्ञान-प्राप्ति से उनको सन्तोष नहीं हुआ। पठित साहित्य में से उपलब्ध ज्ञान अनुभवसिद्ध होने पर अधिक निखरता है, यह धारणा होने से साध्वीजीने स्वयं ध्यान के प्रयोग किए, मनःशान्ति प्राप्त की और शास्त्रीय जानकारी तथा पन्दरह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002078
Book TitleJain Sadhna Paddhati me Dhyana yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1991
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Philosophy
File Size10 MB
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