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________________ परीक्षक- प्रतिवेदन पुणे विश्व विद्यालय की पीएच. डी. (विद्या वाचस्पति) पदवी के लिए "जैन साधना पद्धति में ध्यान योग" नामक शोध प्रबंध जैन साध्वी प्रियदर्शनाजी ने मेरे मार्गदर्शन में लिखा है। जैन साधना पद्धति में ध्यान का अपना विशिष्ट महत्व माना गया है। यही कारण है कि, प्राचीन जैन साधकों और विचारकों ने ध्यान पर विपुल मात्रा में साहित्य निर्माण किया है। जैन आगम साहित्य इस संकल्पना के मूल स्रोत कहे जा सकते हैं। किंतु इस विपुल आगम साहित्य में से ध्यान की संकल्पना का समग्र रूप से एवं व्यवस्थित ढंग से आकलन करते हुए विवेचन करने का कार्य अभी तक नहीं हुआ था। साध्वी श्री प्रियदर्शनाजी ध्यान योग की व्यवहारिक साधिका हैं। उन्होंने प्रदीर्घ परिश्रमपूर्वक अध्ययन करने के बाद जैन साहित्य में प्राप्त ध्यान संकल्पना की सारी दृष्टियों का आकलन तथा विवेचन किया है। इस प्रबंध के लेखन में साध्वी ने शोधकार्य के अनुकूल धैर्य, परिश्रम और बौद्धिक क्षमताओं का परिचय दिया है। उनकी विवेचन क्षमता सराहनीय है। मैं उनकी कार्यमौलिकता और शोध पटुता से संतुष्ट हूँ। तथा यह अनुज्ञा व्यक्त करता हूं कि, श्री प्रियदर्शनाजी को इस प्रबंध पर पीएच. डी. की पदवी प्रदान की जाए। १९-५-८६ पुणे डॉ. ए. डी. बतरा एम.ए., पीएच. डी., डी. वाय. पी. शोध निर्देशक बारह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002078
Book TitleJain Sadhna Paddhati me Dhyana yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1991
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Philosophy
File Size10 MB
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