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________________ अर्थ सहयोगी परिवार का परिचय 'जं सेयं तं समायरे ।' जो श्रेयस्कर हो उसीका समाचरण किया जाए। यह है प्रभु महावीर का दिव्य सन्देश। प्राणिमात्र के लिए श्रेय है - मोक्ष-पथ की साधना | मुक्ती की इस साधना के श्रमण-संस्कृति में व्यक्ति क्षमता के अनुरूप दो मार्ग हैं - एक है श्रमण / अनगार और दूसरा है श्रावक / सागार। वह परिवार, वह कुल, वह कुटुंब निश्चित ही धन्य है, जिसके सदस्य इन श्रेयस्कर पथों की साधना के लिए समर्पित हों। ऐसा ही एक है - चोपडा परिवार, जिसमें से दो साधक आत्माएँ श्रमण पथ पर अग्रसर हैं- परमविदुषी महासतीजी श्री प्रमोदसुधाजी एवं प्रस्तुत शोध- प्र - प्रबन्ध की लेखिका महासतीजी बा. ब्र. डॉ. प्रियदर्शनाजी। इस चोपडा परिवार के एक सदस्य - उपरोक्त साध्वीद्वय के सांसारिक बन्धु हैं पूना निवासी उदार हृदयी श्री संपतलाल चोपडा, जो अपने नामानुसार स्नेह, सेवा, सौजन्यरूपी संपदा के धनी अपने प्रियजनों में संपतभाऊ इस नाम से विख्यात हैं। पूना के श्री वर्धमान श्वे. स्थानकवासी जैन श्रावक संघ (साधना सदन) के आप वर्षों से मन्त्री हैं। सन्त-सतियों एवं अभ्यागत दर्शनार्थियों की सेवा में सदासर्वदा तत्पर रह कर मन्त्री पद की गरिमा बढा रहे हैं। श्रमण संघ के आचार्य सम्राट् प. पू. आनन्दऋषिजी महाराज के आप विशेष स्नेह - कृपापात्र हैं। अपनी सेवा - भक्ति द्वारा हर सन्त- सतीवृन्द का मन सहज रूप से आप जीत लेते हैं। सेवाभावी संस्थाओं- आनन्द प्रतिष्ठान, तिलोक रत्न स्था. जैन धार्मिक परीक्षा बोर्ड, अ. भा. श्वे. स्थानकवासी जैन कान्फ्रेन्स के आप कार्यकारिणी के सदस्य हैं। आपने धार्मिक एवं आध्यात्मिक सेवाओं के साथ व्यापार के क्षेत्र में भी सफलता हासिल की है। हर व्यक्ति के सुख-दुःख में सहभागी बनने में भी आपकी तत्परता प्रशंसनीय है। - पिता स्व. चान्दमलजी चोपडा घोडनदी के निवासी व्यापार के लिए पूना आये हुए श्री. चांदमलजी चोपडा एक धर्मनिष्ठ, श्रद्धाशील सुश्रावक रहे हैं। प्रभुदर्शन, प्रभुस्मरण, प्रभुशरण यह त्रिसूत्री आपके संपूर्ण जीवन का नित्यक्रम रही है। व्यवसाय में आपने कभी अनीति का आश्रय नहीं लिया। वे अनीति - असत्य की घृणा करते रहे। जीवन की संध्या को पहचानते हुए अपनी दृढ धर्मनिष्ठा भक्ति की अन्तिम परिणति स्वरूप अपनी सुपुत्री साध्वी प्रमोदसुधाजी के मुखारविंद से संथारा व्रत धारण कर समाधि-म‍ -मरण प्राप्त किया। Jain Education International - For Private & Personal Use Only - नव www.jainelibrary.org
SR No.002078
Book TitleJain Sadhna Paddhati me Dhyana yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1991
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Philosophy
File Size10 MB
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