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________________ विनम्ती या महाविद्या भूतियाँ है। उल्लेख्य है कि कुछ ग्रन्थों में महामानसी को सिंह वाहना बताया गया है।' पाँचवों मूर्ति में ललितमुद्रा में पद्मासीन अष्टभुजा देवी का वाहन मकर है। देवी के अवशिष्ट करों में शूल, वज्र, खड्ग, फलक और पुस्तक प्रदर्शित हैं। आचारदिनकर में महामानसी को मकरवाहना और खड्ग, खेटक, रत्न तथा वरदमुद्रा से युक्त बताया गया है ।२ शीर्ष भाग की लघु देवी आकृतियों को यहाँ अभय, सक, पुस्तक और जलपात्र तथा हंस वाहन के साथ दिखाया गया है । ये सरस्वती की मूर्तियाँ हैं । छठी अष्टभुनी देवी ललितासन में पद्मासीन हैं। जटामुकुट तथा वृषभ वाहन वाली देवी के सुरक्षित हाथों में त्रिशूल, पद्म और पाश स्पष्ट हैं। देवी की पहचान गौरी से की जा सकती है । मन्त्राधिराजकल्प में वृषभवाहना देवी के हाथों में पद्म, अक्षमाला, वरदमुद्रा और दण्ड का उल्लेख हुआ है।३ सातवीं मूर्ति में चतुर्भुजा और ललितासीन देवी का वाहन सिंह है और उनके एक अवशिष्ट पाणि में पद्म-पुस्तक प्रदर्शित है। देवी की पहचान संभव नहीं है । आठवीं मूर्ति अत्यन्त खंडित रूप में है जिसमें देवी का वाहन हंस है और एक हाथ में खेटक प्रदर्शित है। वाहन के आधार पर देवी की पहचान पुरुषदत्ता से की जा सकती है जिसका दिगम्बर परंपरा में वज्र, पद्म, शंख और फल के साथ ध्यान किया गया है। नवी देवी की आकृति पूर्णतः खंडित है। गरुडवाहना ( मानवाकार ) अष्टभुजा देवी के सभी हाथ नष्ट हो चुके हैं। किन्तु गरुड वाहन के आधार पर देवी को अप्रतिचक्रा से पहचाना जा सकता है ।' दसवीं देवी चतुर्भुजा और त्रिभंग में हैं। उनके तीन अवशिष्ट करों में से एक से वरदमुद्रा व्यक्त है तथा अन्य दो में पद्म हैं । वाहन की आकृति स्पष्ट नहीं है । अगली देवी अष्टभुजा और ललितासन में पद्मासीन हैं। खंडित भुजाओं वाली देवी का वाहन गज है जिसके आधार पर इनकी पहचान वज्रांकुशा या वज्रशृंखला से की जा सकती है। १२वीं अष्टभुजी देवी ललितासीन और मृगवाहना हैं । देवी के दो अवशिष्ट करों में अभयमुद्रा और खेटक है। इस देवी की पहचान काली से संभव है जिसे दिगम्बर ग्रन्थों में मृगवाहना तथा करों में मूसल, खड्ग, पद्म और फल से युक्त बताया गया है ।" अगली चतुर्भुजा देवी ध्यानमुद्रा में पद्म पर आसीन हैं। देवी के सभी हाथ टूटे हैं और वाहन भी अनुपस्थित है । चौदहवीं अष्टभुजा देवी पद्म पर ललितासीन और मयूरवाहन वाली हैं । देवी के आठ हाथों में से केवल एक सुरक्षित है जिससे अभयमुद्रा व्यक्त है। मयूर वाहन १. निर्वाणकलिका, पृ० ३७ । २. आचारविनकर, भाग-२, प्रतिष्ठाधिकार ३४. १६ । ३. मन्त्राधिराजकल्प ३.११ । ४. प्रतिष्ठासारोद्धार ३. ४२; प्रतिष्ठातिलकम् ७. ६ । ५. निर्वाणकलिका, पृ० ३७ । ६. शाह, यू० पी०, पूर्व निविष्ट, पृ० १२७-३२ । ७. प्रतिष्ठासारोद्धार ३. ४३; प्रतिहानिलकम् ७. ७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002076
Book TitleKhajuraho ka Jain Puratattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherSahu Shanti Prasad Jain Kala Sangrahalay Khajuraho
Publication Year1987
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Art, & Statue
File Size10 MB
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