SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यक्ष-यक्षी मूर्तियाँ हैं । घण्टई मंदिर के ललाटबिम्ब की अष्टभुजा चक्रेश्वरी के हाथों में फल, घण्टा, चक्र, चक्र, चक्र, चक्र, धनुष और कलश हैं। पार्श्वनाथ मंदिर के ललाटबिम्ब की दशभुजा चक्र श्वरी के दो हाथों में चक्र और शेष में वरदमुद्रा, खड्ग, गदा, पद्म, कार्मुक, फलक, गदा और शंख हैं। मन्दिर १/१४ के उत्तरंग की षड्भुजी मूति ( ११वीं शती ई० ) में चक्रेश्वरी के चार हाथों में चक्र और दो में वरदमुद्रा और शंख हैं। १०वीं-११वीं शती ई० के अन्य ६ उदाहरणों में चक्रेश्वरी चतुर्भजा हैं और उसके हाथों में अभय ( या वरद )-मुद्रा, गदा, चक्र और शंख हैं। उत्तरंगों के अतिरिक्त चार अन्य स्वतन्त्र मूर्तियाँ ( ११वीं शती ई०) भी हैं। इनमें से एक उदाहरण के अतिरिक्त अन्य में यक्षी चतुर्भुजा हैं । षड्भुजी मूर्ति में चक्र श्वरी के हाथों में अभयमुद्रा, गदा, छल्ला, चक्र, पद्म एवं शंख हैं। चतुर्भुजी मूर्तियों में यक्षी के करों में अभय या वरद-मुद्रा, गदा ( या चक्र ), चक्र एवं शंख ( या फल ) प्रदर्शित हैं। मनोवेगा दिगम्बर ग्रन्थों में अश्ववाहना मनोवेगा को चतुर्भुजा और करों में वरदमुद्रा, खेटक, खड्ग और मातुलिंग से युक्त बताया गया है।' खजुराहो के पुरातात्त्विक संग्रहालय में ऐसी एक मूर्ति ( क्रमांक ९४० ) है जिसकी पहचान अश्ववाहन के आधार पर छठे तीर्थकर पद्मप्रभ की यक्षी मनोवेगा से की जा सकती है। चतुर्भुजा देवी के तीन हाथ खण्डित हैं और एक में चक्राकार पद्म है। त्रिभंग में अवस्थित देवी की पीठिका पर अश्ववाहन की आकृति बनी है । ११वीं शती ई० की इस मूर्ति में दोनों पाश्वों में सेविकाओं और परिकर में ललितासीन देवियों की मूर्तियाँ हैं। परिकर की चतुर्भुजा देवी के हाथों में अभयमुद्रा, पद्म, पद्म-पुस्तक और जलपात्र हैं । इन देवियों की पहचान सरस्वती से की जा सकती है। अंबिका या कुष्मांडिनी ___ अंबिका या कुष्माण्डी २२वें तीर्थंकर नेमिनाथ की यक्षी हैं जिसे आम्रादेवी भी कहा गया है । जैन धर्म की प्राचीनतम यक्षी होने के कारण ही यक्षियों में अंबिका सबसे अधिक लोकप्रिय रही हैं । इस लोकप्रियता के कारण ही श्वेताम्बर स्थलों पर २४ यक्ष-यक्षी युगलों की स्वतन्त्र धारणा के विकास के बाद भी सभी जिनों के साथ यक्षी के रूप में अंबिका का ही निरूपण हुआ है। दिगम्बर ग्रन्थों में यक्षी का यद्यपि द्विभुज और चतुर्भज दोनों ही रूपों में ध्यान किया गया है, किन्तु आयुध केवल दो ही हाथों के निर्दिष्ट किये गये हैं । अंबिका का वाहन सिंह है और उसके दाहिने हाथ में आम्रलंबि तथा बायें में बालक ( प्रियंकर ) का उल्लेख है। यक्षी आम्र वृक्ष की छाया में आसीन होगी और उसके समीप ही दूसरे पुत्र ( शुभंकर ) की भी आकृति बनी होगी। १. प्रतिष्ठासारसंग्रह ५. २८; प्रतिष्ठासारोद्धार ३.१६१ २. देवी कुष्माण्डिनी यस्य सिंहगा हरितप्रभा । चतुर्हस्तजिनेन्द्रस्य महाभक्तिविराजितः ॥ द्विनुजा सिंहमारूढा आम्रोदवी हरित्प्रभा । प्रतिष्ठासारसंग्रह ५. ६४, ६६; प्रतिष्ठासारोबार ३. १७६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002076
Book TitleKhajuraho ka Jain Puratattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherSahu Shanti Prasad Jain Kala Sangrahalay Khajuraho
Publication Year1987
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Art, & Statue
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy