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________________ खजुराहो की जैन कला मूर्तियाँ हैं। अधिष्ठान की रथिकाओं में सरस्वती की दो ललितासीन मूर्तियाँ हैं। सरस्वती की तीन अन्य मूर्तियाँ गर्भगृह तथा पश्चिम के संयुक्त जिनालय के उत्तरंगों पर भी हैं । लक्ष्मी और सरस्वती के अतिरिक्त मन्दिर में ब्रह्माणी की भी तीन मूर्तियाँ हैं जिनमें ब्रह्माणी त्रिमुख और चतुर्भुजा हैं। उनरी भित्ति के रथिका बिम्ब में त्रिभंग में खड़ी ब्रह्माणी के चारों हाथ खंडित हैं । उल्लेखनीय है कि लक्ष्मी, सरस्वती एवं ब्राह्मणी की रथिका मूर्तियों में परिकर में छोटी तीर्थंकर मूर्तियाँ भी उत्कीर्ण की गई हैं। ब्रह्माणी की दो अन्य छोटी मूर्तियाँ अर्धमण्डप के उत्तरंग के छोरों पर बनी हैं । हंसवाहन वाली देवी ललितमुद्रा में आसीन हैं और उनके करों में बीजपूरक (या अभय-मुद्रा), शक्ति, पुस्तक और कमण्डलु हैं । मन्दिर क्रमांक १२ इस मन्दिर में मूलनायक के रूप में आदिनाथ की विशाल मनोहारी प्रतिमा (५' ११' x ३' २") प्रतिष्ठित है। वृषभ-लांछन से युक्त तीर्थंकर ध्यानमुद्रा में आसीन हैं । ऋषभनाथ के साथ पारम्परिक जटा-मुकुट और लटें प्रदर्शित नहीं हैं। पर सिंहासन छोरों पर चतुर्भुजा गरुडवाहना चक्रेश्वरी यक्षी तथा पसंधारी सर्वाल यक्ष एवं धर्मचक्र के दोनों ओर वृषभ-लांछन का अंकन स्पष्ट है । यह मूर्ति खजुराहो की सबसे बड़ी ध्यानस्थ मूर्ति है। इस मूर्ति में परिकर का अत्यन्त विस्तृत रूप में अंकन मिलता है। अलंकृत प्रभामण्डल से शोभित मूर्ति में मूलनायक के मुख पर गम्भीर चिन्तन का भाव स्पष्ट है । परिकर में कायोत्सर्ग तीर्थंकर मूर्तियों तथा बादलों की पृष्ठभूमि में आकाशगामी गन्धर्व युगलों का अंकन उल्लेखनीय है । मूलनायक की केश-रचना विशेष आकर्षक है। मन्दिर क्रमांक १३ मन्दिर में मूलनायक के रूप में श्रेयांशनाथ की कायोत्सर्ग प्रतिमा (२' ७' x १' ७') प्रतिष्ठित है। इस प्रतिमा की बायीं ओर विक्रम सम्वत् २०३७ (२५ जनवरी १९८१ ई०) की बाहुबली की एक मूर्ति स्थापित है । श्रेयांशनाथ के दक्षिण-पार्श्व में कूर्मलांछन वाली मुनिसुव्रत की कायोत्सर्ग मूर्ति है। मन्दिर क्रमांक १४ मन्दिर के मध्य में तीर्थकर की लांछनयुक्त मूर्ति है। इस मूर्ति के बायीं ओर सिंहलांछनयुक्त महावीर की मूर्ति है। दाहिनी ओर भी तीर्थंकर की एक मूर्ति है। पर लांछन यहाँ स्पष्ट नहीं है । उपर्युक्त तीनों मूर्तियाँ कायोत्सर्ग-मुद्रा में हैं और दो उदाहरणों में यक्ष-यक्षी भी बने हैं। मन्दिर क्रमांक १५ इस मन्दिर में नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर की ११ वीं शती ई० की त्रितीर्थी मूर्ति (२' ३" x १' ७") स्थापित है । सभी तीर्थंकर कायोत्सर्ग-मुद्रा में हैं। अधमण्डप के बाहर गज आकृतियाँ बनी हैं । ये आकृतियाँ अत्यन्त अलंकृत और प्रभावोत्पादक हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002076
Book TitleKhajuraho ka Jain Puratattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherSahu Shanti Prasad Jain Kala Sangrahalay Khajuraho
Publication Year1987
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Art, & Statue
File Size10 MB
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