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________________ खजुराहो का जैन पुरातत्त्व पार्श्वनाथ मन्दिर प्रदक्षिणापथ-युक्त गर्भगृह, अन्तराल, महामण्डप और अर्द्धमण्डप से युक्त है। यह मन्दिर मूलतः ऋषभनाथ को समर्पित था किन्तु गर्भगृह में सम्वत् १९१७ (१८६० ई०) में स्थापित काले पत्थर में बनी पार्श्वनाथ की मूर्ति के कारण ही इसे आगे चलकर पार्श्वनाथ मंदिर के नाम से जाना जाने लगा । अर्वमण्डप के ललाटबिंब में ऋषभनाथ को यक्षी चक्रेश्वरी तथा गर्भगृह की मूल प्रतिमा के सिंहासन पर ऋषभनाथ के वृषभ-लांछन और पारंपरिक यक्ष-यक्षी गोमुख-चक्रेश्वरी के अंकन, मंदिर के मूलतः ऋषभनाथ को समर्पित होने के अकाट्य प्रमाण हैं। मूलनायक ऋषभनाथ की मूर्ति (जो संप्रति गायब है) के पाश्र्थों में पाँच और सात सर्पफणों के छत्रों से सुशोभित सुपार्श्वनाथ एवं पार्श्वनाथ की कायोत्सर्ग मूर्तियाँ भी बनीं हैं । मंदिर के भीतर के सभी भाग एक आयताकार दीवार द्वारा परिवेष्टित हैं । मण्डप की दीवार को भीतर की ओर से अर्धस्तम्भों का और बाहर की ओर से मूर्तियों की पट्टियों तथा जालीदार वातायनों का आधार प्राप्त है । गर्भगृह तथा मण्डप की भित्तियों के प्रक्षेपों और आलो में जंघा पर क्रमशः नीचे से ऊपर की ओर छोटी होती गयी मूर्तियों की तीन समानान्तर पंक्तियाँ है । नीचे की पंक्ति में प्रक्षेपों पर विभिन्न देवताओं की स्वतंत्र तथा शक्ति सहित एवं अप्सराओं तथा जिनों की लांछनरहित मूर्तियां हैं । इनमें अष्टदिक्पालों, यक्षी अम्बिका, शिव, विष्णु एवं ब्रह्मा आदि की मूर्तियां हैं। बीच-बीच में आलों में व्यालों की विविध रूपों वाली मूर्तियां है। मध्य की पंक्ति में विभिन्न देव-युगलों, लक्ष्मी तथा लांछनरहित जिनों आदि की मूर्तियां हैं । मूर्तिविज्ञान की दृष्टि से केवल निचली दो पंक्तियों की मूर्तियाँ ही महत्वपूर्ण हैं ।' ऊपर की पंक्ति में प्रक्षेपों तथा आलों में पुष्पहार से युक्त विद्याधर युगल, गंधर्व एवं किन्नर-किन्नरियों की उड्डीयमान आकृतियां हैं। नीचे की दोनों पंक्तियों की देव-युगल एवं स्वतंत्र देवों की मूर्तियों में देवता सदैव चतुर्भुज हैं किन्तु उनकी शक्तियां द्विभुजा हैं । इन मूर्तियों में देवताओं को शक्तियों की एक भुजा सदा आलिंगन-मुद्रा में है और दूसरे में दर्पण या पद्म प्रदर्शित है। तात्पर्य यह है कि विभिन्न देवताओं के साथ उनकी पारंपरिक शक्तियों, यथा विष्णु के साथ लक्ष्मी, ब्रह्मा के साथ ब्रह्माणी एवं शिव के साथ शिवा के स्थान पर व्यक्तिगत विशेषताओं से रहित सामान्य लक्षणों वाली शक्तियाँ निरूपित हैं। मण्डप और गर्भगृह के जंघा के अतिरिक्त स्वतंत्र देवताओं एवं देव-युगलों की मूर्तियां मन्दिर के शिखर एवं वरण्ड भाग पर भी चारों ओर बनी हैं । स्वतंत्र देवमूर्तियों में केवल शिव, विष्णु एवं ब्रह्मा तथा देवयुगलों में शिव, विष्णु एवं ब्रह्मा के अतिरिक्त कुबेर, राम, बलराम, अग्नि एवं काम की मूर्तियां हैं। जंघा की मूर्तियों में देवता सदैव त्रिभंग में हैं, पर अन्य भागों की मूर्तियों में इन्हें ललितमुद्रा में भी दिखाया गया है। मंदिर के जंघा एवं अन्य भागों पर जैन यक्षी अम्बिका एवं चक्रेश्वरी तथा सरस्वती, लक्ष्मी, ब्रह्माणी आदि की भी मूर्तियाँ है । जिनों तथा चक्रेश्वरी एवं अम्बिका यक्षियों की मूर्तियों के अतिरिक्त मण्डप के जंघा की अन्य सभी मूर्तियां ब्राह्मण देवकुल से संबंधित १. विस्तार के लिए द्रष्टव्य, ब्रुन, क्लाज़, "दि फिगर ऑव टू लोअर रिलीफ्स ऑन दि पाश्वनाथ टेम्पुल ऐट खजुराहो, आचार्य श्री विजय वल्लभ सूरि स्मारक ग्रन्थ, बम्बई, १९५६, पृ० ७-३५। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002076
Book TitleKhajuraho ka Jain Puratattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherSahu Shanti Prasad Jain Kala Sangrahalay Khajuraho
Publication Year1987
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Art, & Statue
File Size10 MB
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