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________________ खजुराहो की जैन कला खजुराहो, दुबकुण्ड, अहार, मदनेशसागरपुर आदि स्थलों के जैन मूर्ति लेखों में मिलते हैं।' इन लेखों में आये विभिन्न रूपकारों या शिल्पियों के नामोल्लेख भी महत्व के है । इनमें लाखन, कुमार सिंह, पापट एवं रामदेव आदि रूपकारों के नाम उल्लेख्य है । खजुराहो एवं अन्य स्थलों के लेखों में विभिन्न दिगम्बर जैनाचार्यों के भी उल्लेख मिलते हैं, जिनसे सम्पूर्ण क्षेत्र में जैन मंदिरों एवं मूर्तियों के होने तथा उनके स्वतंत्र विचरण का संकेत मिलता है । वासवचन्द्र के अतिरिक्त हमें श्रीदेव, कुमुदचन्द्र, देवचन्द्र आदि जैनाचार्यों के उल्लेख मिलते हैं। __खजुराहो के पार्श्वनाथ मंदिर को सात वाटिकाओं का दान करने वाला पाहिल श्रेष्ठि देदू का पुत्र था । ये वाटिकायें पाहिल, चन्द्र, लघुचन्द्र, शंकर, पंचायतन, आम्र और धंग नाम वाली थीं । वाटिकाओं के नाम स्पष्टतः ब्राह्मण एवं जैन परम्परा के सामंजस्य को प्रकट करते है। खजुराहो के १०७५ ई० के एक मूर्ति लेख में श्रेष्टि बीवनशाह की भार्या पद्मावती द्वारा आदिनाथ की मूर्ति स्थापित किये जाने का उल्लेख है । खजुराहो के ११४८ ई० के एक अन्य मूर्ति लेख में श्रेष्ठि पाणिधर के तीन पुत्रों का तथा पाणिवर द्वारा वहाँ जैन मंदिरों एवं मूर्तियों के निर्माण का उल्लेख मिलता है। खजुराहो के ११५८ ई० के एक अन्य लेख में पाहिल के वंशज एवं गृहपति कुल के साधु साल्हे द्वारा संभवनाथ की मूर्ति की स्थापना का उल्लेख है । लेख में साल्हे के पुत्रों, महागण, महाचन्द्र, शनिचन्द्र, जिनचन्द्र, उदयचन्द्र आदि के भी नाम दिये हैं।" इस प्रकार खजुराहों के विभिन्न मूर्ति लेखों से स्पष्ट है कि व्यापारी परिवार के पाहिल एवं उसके पिता और अन्य पूर्वजों तथा उत्तराधिकारियों ने लगभग २०० वर्षों (९५४-११५८ ई०) तक जैन मूर्ति निर्माण में पूरा आर्थिक सहयोग दिया। इन लेखों से गृहपति वंश के जैन धर्मावलम्बी होने की भी स्पष्टतः सूचना मिलती है। इस कुल के विभिन्न सदस्यों ने आदिनाथ, संभवनाथ एवं नेमिनाथ तीर्थंकरों की मूर्तियां बनवायी थीं। खजुराहो के जैन मंदिर खजुराहो के पूर्वी मन्दिर समूह में ब्राह्मण और जैन दोनों ही धर्मों के मन्दिर आते हैं। घण्टई मन्दिर के अतिरिक्त अन्य सभी जैन मन्दिर एक आधुनिक चहारदीवारी में स्थित हैं। १. द्रष्टव्य, तिवारी, मारुति नन्दन प्रसाद, जैन प्रतिमाधिज्ञान, वाराणसी, १९८१, पृ० २७ । २. पार्श्वनाथ मंदिर के अर्धमंडप के प्रवेशद्वार के समीप ही गोहल, माहुल, देवशर्मा, जयसिंह और पीषन के नाम फर्श और दीवारों पर अभिलिखित है। ज्योति प्रसाद जैन ने इन नामों को पार्श्वनाथ मन्दिर के निर्माण से सम्बद्ध शिल्पियों का नाम माना है। जैन, ज्योति प्रसाद, पूर्व निविष्ट, पृ० २२६ ।। ३. जैन, ज्योति प्रसाद, पूर्व निविष्ट, पृ० २२५; 'जैन, बलभद्र, भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (तृतीय भाग)-मध्य प्रदेश, बम्बई, १९७६, पृ० १४०-४२ । ४. एपिप्राफिया इंडिका, खण्ड १, पृ० १३५-३६ । ५. वही, पृ० १३६; विजयमूर्ति (सं०), जन शिलालेख संग्रह, भाग-३, बम्बई, १९५७, पु० ७९, १०८। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002076
Book TitleKhajuraho ka Jain Puratattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherSahu Shanti Prasad Jain Kala Sangrahalay Khajuraho
Publication Year1987
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Art, & Statue
File Size10 MB
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