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________________ प्रस्तावना mr चन्देल राजवंश का पहला महत्वपूर्ण शासक हर्षदेव (९०५-९२५ ई०) था जो राहिल के बाद सिंहासनासीन हुआ। वस्तुतः हर्ष के समय ही चन्देल राजवंश की शक्ति और प्रतिष्ठा पूरी तरह स्थापित हुई। उसने समकालीन राजवंशों के साथ वैवाहिक सम्बन्धों के माध्यम से चन्देलों की शक्ति में वृद्धि की। इसके काल में ही खजुराहो का मातंगेश्वर मन्दिर (९००-९२५ ई०) बना। हर्षदेव के पश्चात् उसका पुत्र यशोवर्मन् (९२५-९५० ई०) शासक हुआ जो चन्देल राजवंश का यशस्वी और सामरिक प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति था। उसने हर्ष की विजय योजना को और गति दी तथा साम्राज्य का विस्तार किया। उसने गौड़, कोसल, चेदि, कुरू, मिथिला, मालवा, कश्मीर तथा गुर्जरों पर विजय की। कालिंजर किले की विजय उसकी सबसे महत्वपूर्ण विजय थी। प्रतिहारों, कलचुरियों, पालों और परमारों के विरुद्ध सफलता के कारण यशोवर्मन् निर्विवादरूप से उत्तर भारत की एक प्रमुख राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरकर सामने आया। इसके काल में खजुराहो का भव्य लक्ष्मण मन्दिर बना जो स्थापत्य की दृष्टि से मध्य भारत का सर्वाधिक विकसित और अलंकृत मंदिर था। यशोवर्मन् के पुत्र धंग (९५०-१००३ ई०) के शासनकाल में चन्देल राजवंश की प्रतिष्ठा निश्चित रूप से चरमोत्कर्ष पर थी। धंग ने महत्वपूर्ण विजयों द्वारा चन्देल शक्ति को और अधिक दृढ़ किया। इसी के समय में चन्देल साम्राज्य की सीमायें भी सुनिश्चित हुई। धंग चन्देल राजवंश का पहला नृपति था जिसने प्रतिहार सत्ता को पूरी तरह अस्वीकार कर स्वाधीनता घोषित की। उसका राज्य कालिंजर से मालव नदी तक, मालव नदी से कालिंदी तक, कालिंदी से चेदि राज्य तक और चेदि राज्य से गोप (गोपाद्रि-ग्वालियर) तक विस्तृत था। महान् विजेता और शासक होने के साथ ही धंग कला का भी महान् समर्थक था। उसके काल में खजुराहो में जिननाथ, वैद्यनाथ और शम्भु के मन्दिर बने । शम्भु का भव्य मन्दिर स्वयं धंग द्वारा बनवाया गया। वर्तमान विश्वनाथ मन्दिर ही धंग द्वारा निर्मित शम्भु मन्दिर था। धंग द्वारा अपूर्व रूप से सम्मानित पाहिल ने जिननाथ मन्दिर बनवाया था जो वर्तमान पार्श्वनाथ मन्दिर है । वैद्यनाथ मन्दिर की पहचान सम्भव नहीं हो सकी है। धंग के पश्चात उसका पुत्र गण्ड (ल० १००२-०३ से १०१८ ई०) थोड़े समय के लिए शासक हुआ। राजनीतिक दृष्टि से उसका शासन महत्वपूर्ण नहीं था। उसके काल में ही सम्भवतः खजुराहो में देवी जगदंबी और चित्रगुप्त मन्दिर बने । गण्ड के पश्चात् उसका पुत्र विद्याधर (ल० १०१८१०२९ ई०) सिंहासनारूढ़ हुआ जिसके शासनकाल में चन्देल राजवंश गौरव के शिखर पर पहुँचा । अपने समय में वह सम्भवतः उत्तर भारत का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक था। कलचुरियों और परमारों पर उसकी विजय उसके काल की प्रमुख राजनीतिक घटनाएँ थीं । उसने महमूद गजनवी के आक्रमण से कालिंजर किले की दो बार रक्षा की। विद्याधर ने पूर्वजों की मन्दिर निर्माण परम्परा को भी अक्षुण्ण रखा । खजुराहो का कन्दरिया महादेव मन्दिर इस बात का स्पष्ट साक्षी है । अभिलेखों में विद्याधर का शिव के अनन्य भक्त के रूप में उल्लेख हुआ है । १. एपिग्राफिया इंडिका, खण्ड-१, पृ० १४५-४७ । २. विद्याप्रकाश, पूर्व निविष्ट, पृ० ५ । ३. कृष्णदेव, पूर्व निर्दिष्ट, पृ० ४५। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002076
Book TitleKhajuraho ka Jain Puratattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherSahu Shanti Prasad Jain Kala Sangrahalay Khajuraho
Publication Year1987
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Art, & Statue
File Size10 MB
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