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________________ खजुराहो का जैन पुरातत्व करों में घण्टा, त्रिशूल (या शूल) फल और वरद-मुद्रा के प्रदर्शन का निर्देश है। दूसरी आकृति के तीन सुरक्षित करों में पद्म, पुस्तक-पद्म और फल हैं तथा वाहन के रूप में सिंह आकारित है । देवी की पहचान महावीर की सिद्धायिनी यक्षी से सम्भव है। तीसरी आकृति की एक अवशिष्ट भुजा में फल है और वाहन गुक है । इस देवी की पहचान सम्भव नहीं है । चौथी मूर्ति में मकरवाहना देवी के दो अवशिष्ट वाम करों में चक्राकार पद्म और फल प्रदर्शित हैं । मकर के आधार पर देवी की पहचान १६वीं विद्यादेवी महामानसी या १२वें तीर्थकर वासुपूज्य की यक्षी गान्धारी से सम्भव है। चौखट पर बायीं ओर गजलक्ष्मी या अभिषेकलक्ष्मी की एक चतुभुजी मूर्ति है। पद्मासन-मुद्रा में पद्म पर आसीन देवी के ऊपरी हाथों में सनाल पद्म है जिसके ऊपर देवी का अभिषेक करती हुई दो गज आकृतियां बनी हैं । देवी की निचली भुजायें खण्डित है । चौखट की दूसरी पद्मासना देवा की भुजायें खण्डित है, पर एक हाथ में पद्म स्पष्ट है । देवी का वाहन कूर्म है । इसके आधार पर इसे नवें तीर्थकर पुष्पदन्त की यक्षी महाकाली से पहचाना जा सकता है। किन्तु देवी के सिर पर प्रदर्शित तीन सर्पफणों का छत्र इस पहचान में बाधक है। इन देवियों के अतिरिक्त चौखट पर दो ललितासीन पुरुष आकृतियाँ भी उकेरी हैं । ये आकृतियाँ घटोदर हैं और उनके तीन अवशिष्ट हाथों में अभयमुद्रा, परशु और चक्राकार पद्म हैं । इनके साथ वाहन की आकृतियाँ नहीं बनी हैं। इनकी पहचान सर्वाह्ण या सर्वानुभूति यक्ष से की जा सकती है। (ख) मांगलिक स्वप्न जैन ग्रन्थों में प्रत्येक तीर्थंकर के जन्म के पूर्व उनकी माता द्वारा कुछ शुभ स्वप्नों के दर्शन से सम्बन्धित उल्लेख हैं। श्वेताम्बर ग्रन्थों में इन स्वप्नों की संख्या १४ और दिगम्बर ग्रन्थों में १६ बतायी गयी है। कल्पसूत्र में उल्लेख है कि महावीर के गर्भ में आगमन के पूर्व ब्राह्मणी देवानन्दा ने शुभ स्वप्नों का दर्शन किया था। हरिनैगमेषी द्वारा महावीर का भ्रूण देवानन्दा के गर्भ से क्षत्रियाणी त्रिशला के गर्भ में स्थानान्तरित किए जाने के बाद त्रिशला ने भी १४ मांगलिक स्वप्नों का दर्शन किया था।' ल० आठवीं शती ई० के बाद जैन मन्दिरों के प्रवेशद्वारों की बड़ेरियों पर इन मांगलिक स्वप्नों का अंकन प्रारम्भ हुआ। __ कल्पसूत्र, आदिपुराण एवं हरिवंशपुराण में इन स्वप्नों की विस्तृत सूची मिलती है । दिगम्बर ग्रन्थों में १६ मांगलिक स्वप्नों की सूची में गज, वृषभ, सिंह, लक्ष्मी या पद्मा (पद्मा १. कल्पसूत्र, सूत्र ३, ३१-४६ । २. कुंभारिया एवं दिलवाड़ा के मंदिरों में तीर्थंकरों के पंचकल्याणकों के चित्रण के प्रसंग में जन्म कल्याणक के पूर्व १४ मांगलिक स्वप्नों का नियमित अंकन हुआ है । खजुराहो, देवगढ़ एवं अन्य दिगम्बर स्थलों पर १६ मांगलिक स्वप्नों का अंकन मन्दिरों के प्रवेशद्वारों पर हुआ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002076
Book TitleKhajuraho ka Jain Puratattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherSahu Shanti Prasad Jain Kala Sangrahalay Khajuraho
Publication Year1987
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Art, & Statue
File Size10 MB
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