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________________ खजुराहो का जैन पुरातत्व है। मुख पर मन्दस्मित एवं चिन्तन का भाव स्पष्ट है। मूलनायक की केश-रचना छोटे-छोटे सुन्दर गुच्छकों के रूप में दिखायी गयी है जो जटाजूट के रूप में (उष्णीष) बंधी है। इस मूर्ति में वृषभ-लांछन और अष्टप्रातिहार्यों के अतिरिक्त परिकर में १९ अन्य तीर्थकर आकृतियाँ भी सुन्दर ढंग से संयोजित हैं। मूलनायक के दाहिनी ओर पार्श्वनाथ और बायीं ओर सुपार्श्वनाथ तथा ऊपरी भाग में ३१ तीर्थंकरों की आकृतियाँ अलग से रखी गयी हैं जो ऋषभनाथ की मूर्ति की भव्यता और विशालता में वृद्धि करती है । यक्ष और यक्षी के रूप में चार हाथों वाले गोमुख और चक्रेश्वरी आमूर्तित हैं । यह मूर्ति लगभग १०वी-११वीं शती ई० की है। पार्श्वनाथ (क्र० ५४१) : १०वीं शती ई० को इस मूर्ति में पार्श्वनाथ को कायोत्सर्ग मुद्रा में दिखाया गया है । पार्श्वनाथ (क्र० ५४२, १०वीं शतो ई०) : इस उदाहरण में भी पाश्वनाथ को सात सर्पफणों के छत्र से युक्त और कायोत्सर्ग मुद्रा में दिखाया गया है। . कक्ष २ : ऋषभनाथ (क्र० ७१, १०वीं शती ई०) : यह मूर्ति पर्याप्त खण्डित है । इस मूर्ति (३१" x २' ८') में ध्यानस्थ तीर्थंकर के साथ वृषभ-लांछन एवं यक्ष-यक्षी के रूप में गोमुख और चक्रेश्वरी दिखाए गये हैं। सिंहासन पर दो चतुर्भुजा देवियाँ भी निरूपित है जिनमें से एक वज्रांकुशा (एक हाथ में अंकुश) और दूसरी लक्ष्मी या गान्धारी (हाथ में पद्म) हैं । परिकर में दो कायोत्सर्ग तीर्थकर आकृतियाँ भी बनी है। अजितनाथ (क्र० ३५४, ११वों शती ई०): यह मूर्ति भी पर्याप्त खण्डित है। सिंहासन के नीचे गज-लांछन और सिंहासन छोरों पर चतुर्भुज यक्ष और यक्षी का अंकन हुआ है । यक्ष के हाथों में अभयमुद्रा, पद्म, पुस्तक एवं धन का थैला और मकरवाहना यक्षी के हाथों में अभयमुद्रा, खड्ग, खेटक एवं तर्जनीमुद्रा हैं । इस मूर्ति में सिहासन के ऊपर स्थित आसन अत्यन्त अलंकृत है। अजितनाथ (क्र ० २०, ११वीं शती ई०) : इस मूर्ति (३' x २' ५') में मूलनायक का आसन अत्यन्त अलंकृत है और सिंहासन के मध्य में गज-लांछन भी उत्कीर्ण है । अष्टप्रातिहार्यों के स्थान पर पार्श्वनाथ एवं दो अन्य तीर्थंकरों की आकृतियाँ दिखायी गयी हैं जिनमें से दाहिनी ओर की तीर्थकर आकृति को अश्व-लांछन के आधार पर सम्भवनाथ से पहचाना जा सकता है। कक्ष ३ : सम्भवनाथ (क्र० ५०, ११वीं शती० ई०) : इस ध्यानस्थ मूर्ति में अष्टप्रातिहार्यों एवं परिकर में ६ तीर्थकर आकृतियों का अंकन हुआ है। सिंहासन पर अश्व-लांछन भी बना हुआ है। इस मूर्ति में यक्ष-यक्षी दो हाथों वाले हैं। यक्ष के हाथों में गदा और पर्स तथा यक्षी के हाथों में अभयमुद्रा और पद्म प्रदर्शित हैं । सम्भवनाथ (क्र० १६२, ११वीं शती ई०) : इस कायोत्सर्ग मूर्ति में अश्व-लांछन सुरक्षित है। ___ अभिनन्दन : काले पत्थर की विक्रम सम्बत् १२१५ (११५८ ई०) की ध्यानस्थ मूर्ति में अभिनन्दन का नाम भी उत्कीर्ण है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002076
Book TitleKhajuraho ka Jain Puratattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherSahu Shanti Prasad Jain Kala Sangrahalay Khajuraho
Publication Year1987
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Art, & Statue
File Size10 MB
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