SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 314
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन २६३ चन्द्रकुल के प्रसिद्ध आचार्य नवाङ्गीवृत्तिकार अभयदेवसूरि के सम्बन्ध में जिनप्रभसूरि द्वारा उल्लिखित उपरोक्त विवरण हमें प्रभावकचरित, प्रबंधचितामणि, पुरातनप्रबंधसंग्रह आदि ग्रन्थों में भी प्राप्त होता है, ' अतः कहा जा सकता है कि जिनप्रभसूरि के उक्त विवरण का आधार ये ग्रन्थ ही रहे होंगे। __प्रबंधकोश में कहा गया है कि कुमारपाल, वस्तुपाल और तेजपाल ने इस तीर्थ की यात्रा की थी। वस्तुपाल-तेजपाल द्वारा वि० सं० १२८८ में गिरनार स्थित नेमिनाथ प्रासाद पर उत्कीर्ण कराये गये ६ बृहत् शिलालेखों में अणहिलपुर, भृगुपुर, स्तम्भतीर्थ, दर्भावती और धवलक्क के साथ स्तम्भनक का भी उल्लेख है। वस्तुपालचरित में भी उसके द्वारा यहाँ की यात्रा करने की चर्चा है। जिनप्रभसूरि १. "अभयदेवसूरिचरितम्" प्रभावकचरित, पृ० १६५ "नागार्जुनोत्पत्तिस्तम्भनकतीर्थप्रबन्ध' प्रबन्धचिन्तामणि ( संपा० दुर्गा शंकर शास्त्री ), पृ० १९६ । "अभयदेवसूरिप्रबन्ध'-पुरातनप्रबन्धसंग्रह, पृ० ९५-९६ "पादलिप्ताचार्यप्रबन्ध'-प्रबन्धकोश, पृ० १४ "नागार्जुनप्रबन्ध"-वही, पृ० ८४-८६ २. राजा स्तम्भनपुरे यात्रां सूत्रयामास । तत्पुरं पार्श्वदेवाय ददौ । .... .। "हेमसूरिप्रबन्ध" प्रबन्धकोश, पृ० ५२-५३ ३. एकदा तौ भ्रातरो द्वावपि मन्त्रिपुरन्दरौ महद्धिसङ्घोपेतौ श्रीपार्वं नन्तुं स्तम्भनकपुरमीयतुः । ... ... ... ... ... .... __ "वस्तुपालप्रबन्ध''-प्रबन्धकोश, पृ० १०९ ४. मुनि पुण्यविजय-सुकृतकीर्तिकल्लोलिन्यादिवस्तुपालप्रशस्तिसंग्रह नवम् परिशिष्ट, पृ० ४४--५८ ५. देव त्वं जय रञ्जयन् जनमनोऽभीष्टार्थसार्थार्पणाद्भक्तिप्रह्वसुपर्वशेखरगल न्मन्दारदामाचितः । सर्वाशाप्रसरत्प्रभावनिभृतः श्रीपार्श्वविशेश्वरः, श्रीमत्स्तंभनकाभिधाननगरालङ्कारचूड़ामणिः । यस्यार्चामणिनाममंत्रतदभिश्लेषानुभावोल्लसद्रव्य-णिश्रेमहौषधीसमुदाये माहात्म्यमत्यद्भूतम् । दृष्ट्वाऽशेषमणिव्रजादिषु तथा भावं बुधा मेनिरे, स श्रीपार्वजिनः प्रभाव जलधिर्भूयात्सतां सिद्धये । वस्तुपालचरित ४५०५--५०६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy