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________________ जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन २०३ अपने साम्राज्य में मिलाने के पश्चात् वह वापस लौट गया । इस बार भी आक्रमणकारियों ने सत्यपुर के महावीर जिनालय को कोई क्षति नहीं पहुँचायी । वि०सं० १३६७ में अलाउद्दीन खिलजी ने यहाँ आक्रमण किया तथा चैत्यालय को नष्ट कर प्रतिमा अपने साथ दिल्ली ले गया।" ___सत्यपुर का सर्वप्रथम उल्लेख चौलुक्य नरेश मूलराज 'प्रथम' ( ई० सन् ९४१-९९६ ) के वि०सं० १०५२/ई० सन् ९९५ के एक दान शासन' में प्राप्त होता है। इसीप्रकार सत्यपुर स्थित महावीर चैत्यालय का सर्वप्रथम उल्लेख परमारनरेश भोज ( ई० सन् १०११-१०५५ ) के मंत्री धनपाल द्वारा रचित "सत्यपुरमहावीरजिनोत्साह" नामक स्तोत्र में हआ है। इन विवरणों के आधार पर कहा जा सकता है कि यह नगरी १०वीं शतीके लगभग कभी अस्तित्व में आयी होगी और ई० सन् की ११ वीं शती के आसपास इस महावीर जिनालय का निर्माण हुआ होगा। इस तथ्य को दृष्टि में रखते हुए जिनप्रभ के इस बात जिसके अनुसार वीरनिर्वाण के ६०० वर्ष पश्चात् यहाँ महावीर का जिनालय निर्मित कराया गया, यह बात स्वीकार्य नहीं प्रतीत होती। जहाँ तक निर्माणकर्ता का प्रश्न है, हो सकता है कि नाहड़ राय' नामक किसी व्यक्ति ने उक्त निर्माण कराया हो। ग्रन्थकार ने वि०सं० ८४५ में वलभी नगरी पर गजनी के सुलतान द्वारा आक्रमण करने का उल्लेख किया है। यह सत्य है कि ई० सन् ८वीं शती के अन्तिम चरण में भारत पर विदेशी आक्रमण हुआ, परन्तु यह आक्रमण अरबों की ओर से हुआ था न कि गजनी के सुल्तान की ओर से । दूसरे वि०सं० ८४५ में यह आक्रमण नहीं हुआ बल्कि वि०सं० ८३३ के लगभग हुआ था। अतः यह कहा जा सकता है कि जिनप्रभ की यह मान्यता त्रुटिपूर्ण है। १. इपिग्राफियाइंडिका, जिल्द १०, पृ० ७८ ।। २. जैन साहित्य संशोधक, वर्ष ३, अङ्क २ के अन्तर्गत प्रकाशित । ३. डा. दशरथ शर्मा राजस्थान थ्रो द एजेज, (बीकानेर, ई० सन् १९६६, पृ० १२२ ओर आगे) ने नाहडराय को प्रतिहार नरेश नागभट्ट 'प्रथम, जिसका ८वीं शती ई० सन् का उत्तरार्ध माना जाता है, से समकृत किया है। परन्तु हमें १० वीं शती से पहले सत्यपुर के अस्तित्व का ही पता नहीं चलता अत: यह बात स्वीकार नहीं की जा सकती। ४. विर्जी, के० जे०-ऐन्शेंट हिस्ट्री ऑफ सौराष्ट्र, पृ० १०२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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