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________________ ( ९ ) जैन परम्परा में तोर्थ शब्द का अर्थ-विकास श्रमण परम्परा में प्रारम्भ में तीर्थ की इस अवधारणा को एक आध्यात्मिक अर्थ प्रदान किया गया था । विशेषावश्यकभाष्य जैसे प्राचीन आगमिकव्याख्या ग्रन्थों में भी वैदिक परम्परा में मान्य नदी, सरोवर आदि स्थलों को तीर्थ मानने की अवधारणा का खण्डन किया गया और उसके स्थान पर रत्नत्रय से युक्त साधनामार्ग अर्थात् उस साधना में चल रहे साधक के संघ को तीर्थ के रूप में अभिहित किया गया है । यही दृष्टिकोण अचेल परम्परा के ग्रन्थ मूलाचार में भी देखा जाता है, जिसका उल्लेख पूर्व में हम कर चुके हैं । किन्तु परवर्ती काल में जैन परम्परा में तीर्थ सम्बन्धी अवधारणा में परिवर्तन हुआ और द्रव्यतीर्थ अर्थात् पवित्र स्थलों को भी तीर्थ माना गया । सर्वप्रथम तीर्थंङ्करों के जन्म, दीक्षा, कैवल्य और निर्वाण से सम्बन्धित स्थलों को पूज्य मानकर उन्हें तीर्थ के रूप में स्वीकार किया गया । आगे चलकर तीर्थंकरों के जीवन की प्रमुख घटनाओं से सम्बन्धित स्थल ही नहीं अपितु गणधर एवं प्रमुख मुनियों के निर्वाणस्थल और उनके जीवन की महत्त्वपूर्ण घटना से जुड़े हुए स्थल भी तीर्थ के रूप में स्वीकार किये गये । इससे भी आगे चलकर वे स्थल भी, जहाँ कलात्मक मन्दिर बने या जहाँ की प्रतिमाएँ चमत्कारपूर्ण मानी गयीं, तीर्थं कहे गये । हिन्दू और जैनतीर्थ की अवधारणाओं में मौलिक अन्तर यह सत्य है कि कालान्तर में जैनों ने हिन्दू परम्परा के समान ही कुछ स्थलों को पवित्र और पूज्य मानकर उनकी पूजा और यात्रा को महत्त्व दिया, किन्तु फिर भी दोनों अवधारणाओं में मूलभूत अन्तर है । हिन्दू परम्परा नदी, सरोवर आदि को स्वतः पवित्र मानती है, जैसे - गंगा । यह नदी किसी ऋषि-मुनि आदि के जीवन की किसी घटना से सम्बन्धित होने के कारण नहीं, अपितु स्वतः ही पवित्र है । ऐसे पवित्र स्थल पर स्नान, पूजा अर्चना, दान पुण्य एवं यात्रा आदि करने को एक धार्मिक कृत्य माना जाता है । इसके विपरीत जैन परम्परा में तीर्थ स्थल को अपने आप में पवित्र नहीं माना गया, अपितु यह माना कि तीर्थंकर अथवा अन्य त्यागी तपस्वी महापुरुषों के जीवन से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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