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________________ १४६ पूर्व भारत के जैन तीर्थ तिहांथी सोले कोसें जांणजो रे भद्दिलपुर छे दतारा प्रसिद्ध रे । विषम मारग छे वनखंडे करी रे साथे पंथदिषाऊ सिद्ध रे । आव्या भद्दिलपुर उलट धरी रे गिरि चढिया दिन पूजें भाय रे । राजानो आदेश लेइ करी रे फरस्या पारसनाथना पाय रे। सप्तफणामणि मूरति पासनी रे एक गुफामां एकल्लमल्ल रे। निपट सरोवर कमल फूलें भर्यो रे निर्मल पाणी तास अवल्ल रे । पूजीने ते गिरिथी ऊतरी रे आव्या ग्राम दतारे जेय रे । जनमथयो शीतल जिनरायनो रे ___चार कल्याणक हुआ एथ रे। तीर्थमाला-सौभाग्यविजय प्राचीनतीर्थमालासंग्रह, पृ० ८९-९० से उद्धृत दत्तारो जिनपास आस मनवांछित पूरे । अष्ट वष्ट भय कष्ट पाप भवभवनों चूरे ।। सर्वतीर्थवंदना - ज्ञानसागर तीर्थवंदनसंग्रह-पृ० ७७ से उद्धृत चूकि तीर्थमालाओं में सम्मेतशिखर और दातारग्राम (भद्दिलपुरभोद्दलगांव। तथा उसके निकट स्थित पहाड़ी का अलग-अलग विवरण मिलता है, अतः सम्मेतशिखर को पारसनाथ पहाड़ी की जगह कोल्हुआ पहाड़ से समीकृत करने में भी अनेक कठिनाइयां हैं। यह सत्य है कि पारसनाथ पहाड़ी पर वि० सं० १७६९ से पूर्व का कोई जैनपुरावशेष नहीं मिलता, परन्तु इससे यह निष्कर्ष निकालना कि उससे पूर्व यहां जैनों का कोई भी चिह्न न था, भ्रामक हो सकता १. विजयधर्मसूरि-पूर्वोक्त, पृ० २७-३२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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