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________________ जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन १०७ जन्मस्थान, माता-पिता आदि के सम्बन्ध में ग्रन्थकार ने जो सूचना दी है वह भी पूर्व परम्परा' पर आधारित है। जयघोष एवं विजयघोष नामक ब्राह्मण तपस्वियों के सम्बन्ध में हमें उत्तराध्ययनसूत्र, उसकी नियुक्ति और चूर्णी में सविस्तार विवरण प्राप्त होता है। इसी प्रकार नन्द नाविक के सम्बन्ध में जिस कथा का जिनप्रभ ने उल्लेख किया है वह विस्तार-पूर्वक हमें आवश्यकचूर्णी, आख्यानकमणिकोश तथा उसकी वृत्ति में प्राप्त होता है । १. (i) सुपार्श्वनाथ गब्भगए जं जणणी जाय सुपासा तओ सुपासजिणो। जणणीए चंदपियणंमि, डोहलो तेण चंदाभो॥ आवश्यकनियुक्ति, सूत्र १०९० ।। वारणसीए पुहवीसुपइट्ठीहिं सुपासदेवो य । जेटुस्स सुक्कबारसिदिणम्मि जादो विसाहाए । तिलोयपण्णत्ती ४।५३२ वाराणसौ तौ च सुपार्श्वपाश्वौं .........। वराङ्गचरित २७।८३ पृथिवी सुप्रतिष्ठोऽस्य काशी वा नगरी गिरिः । स विशाखा शिरीषश्च सुपार्श्वश्च जिनेश्वरः ।। हरिवंशपुराण ६०।१८८ (ii) पार्श्वनाथ आवश्यकनियुक्ति, सूत्र २२१-२३२; २९९, ३८४-३९० तेणं कालेणं तेणं समएणं पासे अरहा पुरिसादाणीए जे से हेमंताणं दोच्चे मासे तच्चे पक्खे पोसबहुले तस्स णं पोसबहुलस्स दसमीपखणं नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धट्ठमाणं राइंदियाणं विइक्कंताणं........., जाव तं होउ णं कुमारे पासे नामेणं ॥ कल्पसूत्र-१५१ हयसेणवम्मिलाहिं जादो हि वाणारसीए पास जिणो। पूसस्स बहलएक्कारसिए रिक्खे विसाहाए ॥ तिलोयपण्णत्ती ४।५४८ वाराणसी च वर्मा च विशाखा च धवांह्रिपः। अश्वसेननृपः पार्श्व सम्मेदश्च मुदेऽस्तु वः ॥ हरिवंशपुराण ६०।२०४ २. उत्तराध्ययनसूत्र २५।२-३, ५-६; उत्तराध्ययननियुक्ति, पृ० ५२१; उत्तराध्ययनचूर्णी, पृ० २६८ ३. आवश्यकचूणी, पूर्व भाग, पृ० ५१६ । ४. आख्यानकमणिकोश (मूल तथा वृत्ति, रचनाकाल वि० सं० १२वीं शती) पृ० २२० (प्रका० प्राकृत टेक्स्ट सोसाइटी, अहमदाबाद ।) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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