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________________ ९९ : जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन बात बृहत्कल्पसूत्र में कही गयी है। पार्श्वनाथ का यहाँ बिहार हुआ और उसी समय देवी ने लोगों के लोभ-वृत्ति को देखते हुए स्तूप को ईंटों से ढंक दिया। वीरनिर्वाणसम्वत् १३०० के पश्चात् बप्पभट्टिसूरि हुए, जिन्होंने आमराजा द्वारा इस स्तूप का जीर्णोद्धार कराया। वि०सं० ८२६ में उन्होंने ( बप्पभट्टिसूरि ने ) यहाँ महावीर स्वामी की प्रतिमा स्थापित की। आज भी यहाँ अनेक जिन प्रतिमायें हैं, जिनकी रक्षा देव करते हैं। १३वर्षीय दुष्काल के पश्चात् स्कन्दिलाचार्य ने यहाँ आगमों की वाचना की। देवनिर्मितस्तूप के समक्ष ही देवधिगणि क्षमाश्रमण ने त्रुटित और दीमकभक्षित महानिशीथसूत्र को पूर्ण किया। राजा जितशत्रु के पुत्र कालवेशिक मुनि, राजर्षिशंख, साध्वी कुबेरा, आर्यमंगु, मिथ्यादृष्टिपुरोहित इन्द्रदत्त, आर्यरक्षित, वसहपुष्यमित्र, घृतपुष्यमित्र, दुबंलिकपुष्यमित्र, सुरेन्द्रदत्त और उसकी भार्या राधविध, जिनदत्त श्रेष्ठी के संबल कंबल नामक बछड़े आदि इसी नगरी से सम्बन्धित थे। यहाँ ५ स्थल, १२ वन एवं ५ लौकिक तीर्थ हैं, जो इस प्रकार हैं स्थल-१-अकस्थल, २-वीरस्थल, ३-पद्मस्थल, ४-कुशस्थल और ५-महास्थल। वन-१. लोहवन, २. मधुवन, ३. विल्ववन, ४. तालवन, ५. कुमुदवन, ६. वृन्दावन, ७. भण्डीरवन, ८. खदिरवन, ९. कामिकवन, १०. कोलवन, ११. बहुलावन और १२. महावन । लौकिकतीर्थ-१. विश्रान्तिक तीर्थ, २. असिकुण्ड तीर्थ, ३. वैकुंठतीर्थ, ४. कलिंजरतीर्थ और ५. चक्रतीर्थ । स्तूप निर्माण के सम्बन्ध में जिनप्रभ द्वारा उल्लिखित उक्त कथानक हमें जैन साहित्य में अन्यत्र प्राप्त नहीं होता, अतः उनके इस विवरण का आधार क्या है, कहना कठिन है। कल्पप्रदीप के इस कल्प ( मथुराकल्प ) ने जिन आधुनिक विद्वानों का ध्यान आकृष्ट किया है उनमें सर्वाधिक महात्वपूर्ण बुहलर महोदय हैं, जिन्होंने 'वियना ओरियण्टल जर्नल' (ई० सन् १८९७) में 'ए लीजेन्ट आफ द जैन स्तूप ऐट मथुरा' नामक एक गवेषणात्मक लेख प्रकाशित कराया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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