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________________ रहित हो अर्थात् जो चारित्र का सम्पूर्ण रूप में प्रात्मोल्लासपूर्वक पालन करते हों, जो बहुश्रुत और विद्वान हों, जो कम से कम अनिवार्यतः स्थानांगसूत्र और समवायांग सूत्र के धारक - वेत्ता हों, उन्हें प्राचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, स्थविर, गणी और गणावच्छेदक पद पर अधिष्ठित करना कल्पनीयविहित है। इसी को और स्पष्ट करते हुए बतलाया गया है कि जिन श्रमणों में उक्त गुण या विशेषताएं न हों, उन्हें ये पद देना अकल्पनीय है - ये पद उन्हें नहीं दिये जाने चाहिए। पदों के सम्बन्ध में एक विकल्प यों हैजिन श्रमण-निर्ग्रन्थों को दीक्षा स्वीकार किये पांच वर्ष व्यतीत हो चुके हों, जो प्राचार, संयम, प्रवचन, प्रज्ञा, संग्रह तथा उपग्रह में कुशल हों, जिनका चारित्र अखण्ड, अशबल-प्रदूषित, अभिन्न - एक जैसा सात्विक, असंक्लिष्ट - संक्लेशरहित हो, जो बहुश्रुत और विद्वान् हों, जो कम से कम दशाश्रुतस्कन्ध, वृहत्कल्प, व्यवहारसूत्र के वेत्ता हों, उनके लिए प्राचार्य और उपाध्याय का पद कल्पनीय है - उन्हें प्राचार्य या उपाध्याय के पद पर प्रतिष्ठित करना विहित है।' उपाध्याय पद पर मनोनीत किये जाने योग्य श्रमणों का वर्णन करते हुए बतलाया गया है कि जिन श्रमणों, निर्ग्रन्थों, को दीक्षा स्वीकार किये तीन वर्ष व्यतीत हो गये हों, जो प्राचार, संयम, प्रवचन, प्रज्ञा, संग्रह तथा उपग्रह में कुशल हों, जिनका चारित्र प्रखण्ड, अशबल- प्रदूषित, अभिन्न - सर्वतः सात्विक, असंक्लिष्ट - संक्लेशरहित हो, जो बहुश्रुत और विद्वान् हों, जो कम से कम प्राचारांग और निशीथ के वेत्ता हों, उन्हें उपाध्याय के पद पर आसीन करना कल्पनीय है। उपर्युक्त उद्धरणों में जो दीक्षा-काल दिया गया है, वह न्यनतम है। उससे कम समय का दीक्षित श्रमण साधारणतः ऊपर वरिणत पदों का अधिकारी नहीं होता। पद और दीक्षा-काल पाठ वर्ष, पांच वर्ष और तीन वर्ष के दीक्षा-काल के रूप में ऊपर तीन प्रकार के विकल्प उपस्थित किये गये हैं। अन्य योग्यतायें सबकी एक जैसी बतलाई गई हैं। अाठ वर्ष के दीक्षित श्रमण को प्राचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, स्थविर, गणी तथा गणावच्छेदक का पद दिया जाना कल्पनीय विहित कहा गया है । सात पदों ' व्यवहार सूत्र, उद्देशक ३, सूत्र ५ २ मावश्यक सूत्र, उद्देशक ३, सूत्र ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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