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________________ जैन धर्म का मौलिक इतिहास - द्वितीय भाग [वाणी-परम्परा समुद्रश्री प्रादि जम्बूकुमार की ऐश्वर्य में पली प्रभुपम सुन्दरी माठों पत्नियों ने भोगयोग्या भरपूर यौवनभरी अवस्था में समस्त काम-भोगों, सुखसुविधाओं एवं अपार सम्पदा को ठुकरा कर एक बार मनसा वरण किये गये अपने पति जम्बूकुमार के साथ जिस प्रकार अपने प्रविचल प्रेम का अन्त तक निर्वहन किया, वह वस्तुतः प्रति महान्, अद्वितीय, अनुपम- अनूठा, प्रत्यद्भुत और मुमुक्षुधों के लिये प्रेरणा का प्रक्षय स्रोत रहा है और रहेगा । विश्व के साहित्य में इस प्रकार का और कोई उदाहरण दृष्टिगोचर नहीं होता । ७७६ परम प्रभाविका यक्षा श्रादि साध्वियां (बीर नि० दूसरी-तीसरी शती) प्रायं सुधर्मा और जम्बू के समय की कतिपय प्रमुख साध्वियों का यथोपलब्ध थोड़ा-सा परिचय ऊपर दिया गया है। भार्य जम्बू के पश्चात् प्रार्य प्रभव, आर्य शय्यंभव और प्रार्य यशोभद्र के प्राचार्यकाल की साध्वियों का परिचय उपलब्ध नहीं होता । इन प्राचार्यों के समय में भी साध्वी-परम्परा प्रविछिन्न रूप से निरन्तर चलती रही पर उस समय की प्रमुख साध्वियों के नाम अभी तक • उपलब्ध जैन साहित्य में कहीं दृष्टिगोचर नहीं हुए हैं। ● आर्य यशोभद्र के शिष्य प्राचार्य संभूतिविजय के प्राचार्यकाल में महामंत्री शकडाल की ७ पुत्रियों के दीक्षित होने का उल्लेख मिलता है। यक्षा श्रादि सातों बहिनों की स्मरणशक्ति बड़ी प्रखर प्रोर प्रबल थी। कठिन से कठिन एवं कितने ही लम्बे गद्य प्रथवा पद्य को केवल एक बार सुन कर ही यक्षा उसे अपने स्मृतिपटल पर अंकित कर तत्क्षरण यथावत् सुना देती थी। इसी प्रकार दूसरी, तीसरी यावत् सातवीं बहिन क्रमशः दो, तीन, चार, पाँच, छ मोर ७ बार सुन कर किसी भी गद्य-पद्य को यथावत् सुना देती थी । इन सातों बहिनों ने अन्तिम नंद की राजसभा में वररुचि जैसे पण्डित को अपनी प्रभुत स्मरणशक्ति के चमत्कार से हतप्रभ कर किस प्रकार उसके 'अहं' को विचूर्णित किया, यह भार्य स्थूलभद्र के प्रकरण में बताया जा चुका है। वररुचि द्वारा नियोजित षड्यन्त्र के परिणाम स्वरूप महामन्त्री शकडाल द्वारा मृत्यु का वरण किये जाने और महाराज नवम नन्द द्वारा दिये जा रहे महामात्यपद को ठुकरा कर स्थूलभद्र के प्रव्रजित हो जाने पर स्थूलभद्र की यक्षा आदि सातों विदुषी बहिनों ने भी अपने भ्राता श्रीयक से अनुमति ले उस समय की श्रमणी मुख्या के पास पंच महाव्रत रूप श्रामण्य की दीक्षा ग्रहण की। इन सातों विदुषी साध्वियों ने एकादशांगी का गहन अध्ययन कर अनेक वर्षों तक जिन-शासन की महती सेवा की । प्रद्भुत् स्मरणशक्ति वाली उन सातों साध्वियों ने कितना अथाह ज्ञान अर्जित किया होगा, इसका प्राज अनुमान नहीं किया जा सकता । श्वेताम्बर परम्परा के अनेक ग्रन्थों में इस प्रकार का उल्लेख मिलता है कि क्रमशः भार्य महागिरि और भार्य सुहस्ती ने बाल्यकाल से ही उस समय की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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