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________________ संघ-मुख्यों को सम्बोधित करते हुए पूछा-"यदि हम लोगों के सामने तीन घड़े रखे जायें जो क्रमशः उड़द, तेल और घृत से भरे हों। उन तीनों को क्रमशः पृथकपृथक तीन रिक्त पड़ों में उंडेल दिये जाने पर उनमें उड़द, तेल और घृत कितनीकितनी मात्रा में प्रवशिष्ट रहेंगे ?" सभी ने एक स्वर में उत्तर दिया- उड़द के घड़े में एक भी दाना प्रवशिष्ट न रहेगा। तेल के घड़े में कुछ तेल और घी के घड़े में तेल की अपेक्षा अधिक मात्रा में घृत अवशिष्ट रह जायगा। प्राचार्य रक्षित ने निर्णायक स्वर में कहा - "उड़द के घड़े की तरह मैं अपना समस्त ज्ञान (द्वादशांगी एवं संघ संचालन का ज्ञान) दुर्बलिका पुष्यमित्र में उंडेल चुका हूँ। मेरे शेष सब शिष्यों की स्थितिघृत-घट और तेल-घट तुल्य है। जिस प्रकार तेलपूर्ण एवं घृतपूर्ण घड़े को एक बार अन्य घड़े में उंडेल दिये जाने के मनन्तर भी न्यूनाधिक मात्रा में तेल और घृत अवशिष्ट रह ही जाता है, उसी प्रकार दुर्बलिका पुष्यमित्र को छोड़ कर शेष शिष्य मेरे सम्पूर्ण ज्ञान को ग्रहण नहीं कर सके हैं।" महान् धर्म प्रभावक एवं अनन्य उपकारी धर्माचार्य के संघहितकनिष्ठ आन्तरिक उद्गारों को सुनते ही तत्क्षरण समस्त संघ का सम्यकपेण समाधान हो गया, सभी मतभेद समाप्त हो गये, सभी पक्षों को पूर्ण संतोष हमा और तत्काल श्रमण समूह और समस्त संघ ने सर्व सम्मति से दुर्बलिका पुष्यमित्र को प्रार्य रक्षित के उत्तराधिकारी प्राचार्य के रूप में स्वीकार किया। भविष्य ने भी सिद्ध कर दिया कि प्राचार्य रक्षित का निर्णय वस्तुतः बड़ा दूरदर्शिता पूर्ण, सर्वथा उपयुक्त, समीचीन एवं भगवान् महावीर के धर्मसंघ की भावी संकट से रक्षा करने वाला था। प्राचार्य रक्षित के स्वर्ग यमन के कुछ ही समय पश्चात मुनि गोष्ठा माहिल जब उत्सूत्र प्ररूपक सातवां निह्नव बना और प्राचार्य दुर्बलिका पुष्यमित्र ने प्रार्य रक्षित द्वारा प्रदत्त दिव्य प्राध्यात्मिक शक्ति के बल पर गोष्ठा माहिल जैसे शास्त्रार्थ कुशल दुर्जेय तार्किक को समस्त संघ के समक्ष हतप्रभ कर प्रभू महावीर के सिद्धान्तों एवं संघ के प्रति जन-मानस में समादर की अभिवृद्धि की तो धर्म संघ के प्रत्येक सदस्य के मुख से यही उद्गार निकले - "मार्य रक्षित वस्तुतः महान् भविष्य-द्रष्टा थे। उनका निर्णय प्रतीव अद्भुत, सर्वथा उपयुक्त और बड़ा दूरदर्शितापूर्ण था, जो उन्होंने सर्वतः सक्षम-समर्थ दुर्बलिका पुष्यमित्र को अपना उत्तराधिकारी बनाया। यदि हम लोगों को प्रसन्न रखने के लिये संघहित की उपेक्षा कर गोष्ठामाहिल को प्राचार्य पद का उत्तराधिकारी घोषित कर देते तो प्रभु के विश्व कल्याणकारी धर्म संघ का कितना बड़ा अहित होता। कोटि-कोटि प्रणाम हैं उन दिवंगत महान् दूरदर्शी प्राचार्य को।" ___ इस प्रकार की ऐतिहासिक घटनाओं से यह भली-भांति, प्रमाणित होता है कि भगवान महावीर ने अपने धर्म संघ के संचालन के लिये जो, संघ के अंकुश ' प्रस्तुत, ग्रन्थ, पृ० ५६८-६०२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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