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________________ गया है। मध्ययुगीन अनेक विद्वान ग्रन्थकारों ने सिद्धसेन प्रभृति कतिपय प्रभावक प्राचार्यों के जीवन चरित्र का आलेखन करते हुए उनके जीवन की कुछ ऐसी चमत्कारपूर्ण घटनाओं का उल्लेख किया है, जिन पर आज के युग के अधिकांश चिन्तक किसी भी दशा में विश्वास करने को उद्यत नहीं होते। त्यागी, तपस्वी महान पुरुषों के प्रबल आत्मबल में अचिन्त्य शक्ति होती है, इस बहुजन सम्मत तथा भारतीय संस्कृति के प्रायः सभी अध्यात्म विषयक प्राचीन ग्रन्थों द्वारा प्रतिपादित तथ्य से इतिहास के पाठकों को थोड़ा बहुत अवगत कराने की दृष्टि से श्रद्धास्पद पूर्वाचार्यों द्वारा विशद रूपेण वणित घटनाओं में से एक दो चमत्कारिक घटनाओं का भी इस ग्रन्थ में उल्लेख किया गया है । इस स्पष्टीकरण का मूलतः मूख्य तात्पर्य यही है कि प्रस्तुत ग्रन्थ में जो कुछ लिखा गया है, वह सब कुछ साधार है, बिना प्राधार के एक भी बात नहीं लिखी गई है। विशुख उद्देश्य -केवल तथ्य को खोज : - यह एक निर्विवाद तथ्य है कि इतिहास के क्षेत्र में केवल उन्हीं विवरणों को पूर्ण प्रामाणिक माना जाता है, जिनको सत्य सिद्ध करने वाले ठोस प्राधार हों। कतिपय ऐतिहासिक घटनाओं के सम्बन्ध में समय-समय पर बहुत से विद्वानों ने ऊहापोह, किंवदन्ती, निरे अनुमान, केवल-कल्पना अथवा पारम्परिक मान्यता के नाम पर अपनी-अपनी मान्यताएं रखी हैं। इस प्रकार के प्राचीन अथवा अर्वाचीन विद्वानों की वे व्यक्तिगत मान्यताएं यद्यपि ऐतिहासिक घटनाक्रम, निष्पक्ष साक्ष्य एवं समकालीन अन्य निर्विवादास्पद ऐतिहासिक घटनाचक्र से अन्यथा सिद्ध होती हैं, तथापि प्राज वे लब्धप्रतिष्ठ विद्वानों की मान्यता होने, बहजनसम्मत होने, पक्ष विशेष की प्राचीनता की साधक होने अथवा अन्य कतिपय कारणों से निर्विवादास्पद मान्यताओं का रूप धारण करती जा रही हैं। इस तरह की कतिपय मान्यताओं को अप्रामाणिक-अमान्य सिद्ध कर देने वाले जो प्रबल तथ्य हमें उपलब्ध हुए हैं, उन्हें यथास्थान उल्लिखित कर हमने वास्तविकता को प्रकाश में लाने का प्रयास किया है। ऐसे प्रसंगों पर हमें कुछ इस प्रकार के तथ्य भी प्रस्तुत करने पड़े हैं, जो कतिपय विद्वानों की मान्यताओं के अनुकूल नहीं पड़ते। ऐसा करने के पीछे हमारी किंचित्मात्र भी इस प्रकार की भावना नहीं रही है कि किसी के भावुक कोमल मन को किसी प्रकार की कोई ठेस पहुंचे। हमारी चेष्टा पक्षपात विहीन एवं केवल यही रही है कि वस्तुस्थिति प्रकाश में लाई जाय । सम्प्रदाय-मोह एवं परम्परा विशेष के पूर्वाग्रह से विमुक्त हो तटस्थ भाव से लिखते हुए भी विचार-भेद अथवा दृष्टिभेदवशात् यदि कोई उल्लेख तथ्य की सीमा का किंचित्मात्र भी अतिक्रमण कर गया हो तो 'तं मे मिच्छामि दुक्कडं ।' संघ-संचालन की प्रणाली :- कोई भी संगठन, चाहे वह धार्मिक, राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक अथवा सांस्कृतिक संगठन हो, उसके संचालन के लिए किसी एक प्रणाली को अपनाना प्रावश्यक हो जाता है। अनेक भेद-प्रभेदों के होते हुए भी इस प्रकार के संगठनों को सुचारु रूप से चलाने के लिए मुख्य रूप से For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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