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________________ तदनुसार वीर नि० सं०७०३ के लेख सं० ६६ में उद्देह गण, इसके परिधासिक (परिहासय) कुल और पेतपुत्रिका (पुण्य पत्रिका) शाखा का स्पष्ट उल्लेख है।" इसी प्रकार आर्य सुहस्ती के चतुर्थ शिष्य आर्य कामधिगरणी से निकले वेसवाडिय गण और उसकी शाखामों का नाम तो मथुरा के शिलालेखों में स्पष्टतः उकित नहीं है किन्तु इस गण के चार कूलों में से मेहिय (मेहिक) नामक कुल का उल्लेख कुछ त्रुटिताक्षरों में लेख सं० २६ और ६३ में विद्यमान है। आर्य सुहस्ती के पांचवें एवं छठे प्रमुख शिष्य आर्य सुस्थित और सुप्रतिबद्ध से निकले कोटिक (कोडिय अथवा कोटिय) गण का उल्लेख शिलालेख संख्या १८ तथा २५ में, कोटिय गण, ब्रह्मदासिय (बंभलिज्ज) कूल एवं उच्चनागरी (उचेनागरी) शाखा का उल्लेख लेख संख्या १९, २०, २२ एवं २३ में, कोटिय गण के वत्थलिज्ज कुल का वच्छलियातो कुलातो के रूप में लेख सं० २७ में, कोटिय गण, ठानिय कुल (संभवतः वारिणय अथवा वाणिज्य कुल का विकृत रूप), श्रीगह संभोग, वजी (वेरि) शाखा का उल्लेख लेख सं० २६ एवं ३० में, कोटिय गरण, बम्भलिज्ज कुल (ब्रह्मदासिक कुल के रूप में), उच्चनागरी शाखा तथा श्रीगृहसंभोग का उल्लेख लेख सं० ३१ में, कोट्टिय गरण, ब्रह्मदासिक (वम्भलिज्ज) कुल तथा उचेनागरी शाखा का उल्लेख लेख सं० ३५ में, इस गण की केवल उच्चनागरी शाखा का उल्लेख लेख सं० ३६ में, कोटिय गण वेरि शाखा ठारिणय (वारिणय) कुल का उल्लेख लेख सं० ४० एवं ४१ में, इस गरण के बंभदासिक (बम्भलिज्ज) कुल मोर उच्चनागरी शाखा का उल्लेख लेख सं० ५० में, कोटिक गण वेरा (वजी) शाखा, स्थानिक कुल, श्रीगृह संभोग, वाचक आर्य घस्तुहस्ति (हस्तिहस्ति अर्थात् नागहस्ति) के शिष्य मंग्रहस्ति का उल्लेख लेख सं० ५४ में, कोटियगण, स्थानिय (वारिणय) कुल वैरा शाखा, श्रीगह संभोग वाचक आर्य हस्तहस्ति (नागहस्ति) का उल्लेख लेख सं० ५५ में किया गया है। १. काल की दृष्टि से गण, कुल एवं शाखा के उल्लेख से युक्त सबसे पहला शिला लेख है कुषारणवंशीय राजा कनिष्क के राज्यकाल के ५ वें वर्ष (ई० सन् ८३ तदनुसार वीर नि० सं० ६१०) का। इसमें लिखा है :'सिद्ध (म) ।। नमो परहतो महावीरस्य दे"रस्य । राजवासुदेवस्या संवत्सरे १०८ वर्षमासे ४ दिवसे १. १. एतस्या २. पूर्वाय पर्य्यदेहिकियातो ग (णातो) परिघासिकातो कुमातो पेतपुत्रिकातो शाखातो गरिणस्य अयं देवदतस्य न ३. य्यं क्षेमस्य ४. प्रकगिरिएं ५. कि हदिये प्रज ६.""तस्य प्रवरकस्य धिनु वरुणस्य गन्धिकस्य वधूये मित्रस"दत्त गा [१] ७ ये""भगवतो महावीरस्य । जैन शिलालेख सं०, भा० २ (माणिकचन्द्र दिगम्बर जैन ग्रं. माला समिति), लेख सं. २४ तथा ६६, पृ. २२ एवं ४७ २३ जैन शिलालेख संग्रह भाग २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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