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________________ मं० २१५ में शामनाख्तु हुए ही मगध सम्राट् वना दिया। गगन विषयक त्रुटि उन्हीं के उल्लेख से पकड़ ली गई । चन्द्रगुप्त को वीर नि० सं० १५५ में ६० वर्ष पहले प्राचार्य हेमचन्द्र द्वारा की गई यह राज्यकाल द्वारा किये गये महाराजा कुमारपाल के काल के दिगम्बर एवं श्वेताम्बर दोनों ही परम्पराम्रों द्वारा सर्वसम्मति से स्वीकृतविक्रम संवत्, ई० मन्, शक संवत् तथा वीर नि० संवत् इन सब कालगणनाओं के तुलनात्मक विवेचन के अनन्तर पुर्गातः प्रामाणिक सिद्ध हुई राज्यकालगणना में दोनों परस्परात्रों के हरिगंगा, हेमचन्द्र ग्रादि चार ग्राचार्यों ने जो ६० वर्ष का अन्तर डालकर भ्रान्ति उत्पन्न की है, उस भ्रान्ति का निराकरण न किये जाने की दशा में न केवल जैन इतिहास पर हो अपितु भारत के विगत २३०० वर्षों के इतिहास पर भी बड़ा विपरीत प्रभाव पड़ता है । यद्यपि इस लम्बे काल पं चले या रहे बहुचचित प्रश्न पर हमने ग्रालेख्यमान ग्रन्थमाला के प्रथम भाग ( भगवान महावीर के प्रकरण ) में पर्याप्त प्रकाश डाला है तथापि द्वितीय भाग के लेखन काल में हमें इस भ्रान्ति का सदा के लिये ग्रन्तिम रूप से निवारण करने वाले जो तथ्य उपलब्ध हुए हैं उनका इस प्रकरण में निष्पक्ष विदेशी साध्य के साथ उल्लेख कर इस उलभी हुई गुत्थी को सदा के लिये सुलझाने का प्रयास किया है। हमारा यह प्रयास कहां तक सफल रहा है, इसका निर्णय पाटक तटस्थ दृष्टि से करें । ईसा पूर्व ३२७ में भारत पर आक्रमण के समय सिकन्दर के साथ प्राये हुए सेनाध्यक्षों द्वारा लिखे गये संस्मरणों तथा उनके उल्लेख के साथ प्रसिद्ध यूनानी राजदूत मेगस्थनीज द्वारा लिखे गये संस्मरणों के आधार पर विदेशी विद्वान् जस्टिन (ईमा की दूसरी शती) ने 'एपिटोम' (सारसंग्रह) नामक पुस्तक लिखी । उस पुस्तक में मिकन्दर के सेनानियों द्वारा कतिपय ग्राँखों देखी तथा प्रत्यक्ष अनुभूत घटनाओं का विवरण है। ग्राज मे २३०० वर्ष पूर्व की प्रति प्राचीन, कतिपय ग्रंथों में पूर्णतः निष्पक्ष एवं प्रामाणिक साक्षी के उन उल्लेखों से इस प्रकरण मैं यह सिद्ध कर दिया गया है कि ईसा से ३२४ वर्ष पूर्व तक नन्दवंश का शक्तिशाली साम्राज्य, सम्राट् नवम नन्द और विदेशी प्रातताइयों को भारत की भूमि से बाहर खदेड़ने का दृढ़ संकल्प लिये रणांगण में युद्धरत युवा देशभक्त योद्धा चन्द्रगुप्त - ये सभी विद्यमान थे। इस प्रकार के प्रवल प्रमाणों से पुष्ट ऐतिहासिक तथ्य के समक्ष चन्द्रगुप्त मौर्य को श्रुतकेवली भद्रबाहु का समकालीन, शिष्य श्रमण अथवा साक्षात् आवक बताने वाले कथानक का मूल्य एक निराधार किवदन्ती अथवा कपोलकल्पित कथानक से अधिक नहीं हो सकता । ' पानगरो पट्टी परणरणमयं वियाणि यांदा । मुरियारण गहिसमं तीसा गुणपुरा मिला || [तियोगालिय इला ] * देखिये प्रस्तुत ग्रन्थ, पृ० ४३६ । Jain Education International ( १०० ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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