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________________ ३०२ जैन धर्म का मौलिक इतिहास [चक्रवर्ती महापद्म ज्येष्ठ राजपुत्र विष्णुकुमार की बाल्यकाल से ही सांसारिक कार्यकलापों एवं ऐहिक भोगोपभोगा के प्रति किसी प्रकार की अभिरुचि नहीं थी । अतः उन्होंने कालान्तर में माता-पिता की अनुज्ञा प्राप्त कर श्रमगाधर्म की दीक्षा ग्रहण कर ली । अंगशास्त्रों के अभ्यास एवं विशुद्ध श्रमणाचार की परिपालना के साथ-साथ मुनि विष्णकुमार ने सुदीर्घ काल तक अति कठोर दुष्कर तपश्चरण किया । उग्र तपश्चर्यायों के प्रभाव से मुनि विष्णुकुमार को अनेक प्रकार की उच्चकोटि की लब्धियां एवं विद्याएं स्वतः ही प्रकट हो गईं। महाराजा पद्मोत्तर ने होनहार चक्रवर्ती सम्राट के योग्य सभी लक्षणों से युक्त अपने द्वितीय पुत्र महापद्म को युवराज पद पर अभिषिक्त कर शासनसंचालन के भार से निवृत्ति ली। उन्हीं दिनों बीसवें तीर्थंकर भ० मुनिसुव्रत स्वामी के शिष्य प्राचार्य सुव्रत अप्रतिहत विहार करते हुए विहार क्रम से उज्जयिनी पधारे । प्राचार्यश्री के शुभागमन का सम्वाद सुन उज्जयिनीपति श्रीवर्मा भी अपने प्रधानामात्य नमुचि एवं अपने परिजनों-पौरजनों आदि के साथ प्राचार्यश्री के दर्शनार्थ नगर के बहिस्थ उद्यान में गया । सुव्रताचार्य का वन्दन नमन करने के पश्चात् राजा उपदेश श्रवण की अभिलाषा से उनके सम्मुख बैठा । नमुचि को अपने पाण्डित्य का बड़ा अभिमान था। वहां बैठते ही वह वैदिक कर्मकाण्ड की श्लाघा और वीतराग जिनेन्द्र प्रभु द्वारा प्ररूपित धर्म की निन्दा करने लगा । नमुचि को वितण्डावाद का आश्रय लिये देख सुव्रताचार्य तो मौन रहे किन्तु उनका एक लघ वयस्क शिष्य नमूचि द्वारा किये जा रहे वितण्डावाद और अनर्गल प्रलाप को सहन नहीं कर सका । उसने नमुचि के साथ शास्त्रार्थ कर उसे महाराजा श्री वर्मा के समक्ष ही पराजित कर दिया। उस समय तो वह निरुत्तर हो जाने के कारण कुछ भी नहीं बोल सका किन्तु राजा और प्रजा के सम्मुख एक छोटे से साधु द्वारा पराजित कर दिये जाने के अपमान की अग्नि में उसका तन, मन और रोम-रोम जलने लगा । अपने इस अपमान का प्रतिशोध लेने की भावना के वशीभूत हुआ वह नमुचि उन्मत्त बना रात्रि के घनान्धकार में एक नंगी तलवार लिये घर से निकला और उस उद्यान में प्रविष्ट हुआ, जहां सुव्रताचार्य अपने शिष्यमण्डल के साथ विराजमान थे । नमुचि दबे पांवों उद्यान के मध्य भाग में अवस्थित भवन की ओर बढ़ा । उसने देखा कि वहां सब मुनि निश्शंक भाव से निद्राधीन हैं, चारों ओर अर्द्धरात्रि की निस्तब्धता छाई हई है। निद्राधीन लघु मुनि को दूर से देखते ही क्रोधाविष्ट हो नमुचि ने तलवार की मूठ को दोनों हाथों में कस कर पकड़ा । लघु मुनि की ग्रीवा पर तलवार का भरपूर वार करने के लिये उसने तलवार पकड़े हुए अपने दोनों हाथों को अपने दक्षिणस्कन्ध के ऊपर तक उठाया । नमुचि पूरी शक्ति जुटा कर लघु मुनि की गर्दन पर तलवार का वार करने के लिए उनकी ओर झपटा किन्तु किसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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