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________________ ४० : जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय शक संवत् २६१ अर्थात् ३३६ ई० का कल्भावि का एक अभिलेख उपलब्ध हुआ है किन्तु इस अभिलेख में जो शक संवत् २६१ को विभव संवत्सर नाम दिया गया है वह विभव संवत्सर शक संवत् २६१ में न होकर शक संवत् २३१ में पड़ता है। वस्तुतः यह मर्करा के दानपत्र के समान कोई जाली दानपत्र प्रतीत होता है।' इस अभिलेख में कोरयगण के मइलापान्वय के आचार्य शुभकीर्ति, जिनचन्द्र, नागचन्द्र, गुणकीर्ति और जिनदत्त के उल्लेख मिलते हैं। इसी प्रकार बइलहोंगल (बेलगांव) के एक अभिलेख में यापनीय संघ का मइलापान्वय के कारेयगण के मुल्ल भट्टारक एवं जिनदेश्वरसूरि का वर्णन है। पुनः सन् १२०९ ई० के हन्नकेरि, सन् १२१९ ई० के नदली (बेलगांव) तथा सन् १२५७ ई० के हन्नकेरि के अभिलखों में भी यापनोय संघ के मइलापान्वय और कोरेयगण का उल्लेख है। बदली (बेलगांव) के अभिलेख में भट्टारक माधव, विजयदेव, भट्टारक कीर्ति, कनकप्रभ और श्रीधर विद्यदेव का उल्लेख हुआ है, जबकि हन्नकेरि के अभिलेख में इनमें से परवर्ती दो आचार्यों कनकप्रभ और श्रोधर का उल्लेख है। कोरेयगण के अभिलेख सन् ८७५ ई० से प्रारम्भ होकर सन् १२५७ ई० तक मिलते हैं। इस प्रकार यह गण लगभग ४०० वर्ष तक जीवित रहा। यापनीय संघ में यही एकमात्र ऐसा गण है जिसमें स्पष्ट रूप से मैलाप-अन्वय का भी उल्लेख मिलता है। मैलापतीर्थ में उत्पन्न होने के कारण ही यह अन्वय मैलापान्वय नाम से प्रसिद्ध हुआ होगा। कोटिमडुवगण __ मदनूर, जिला नेल्लोर में ई० सन् ९४५ के अभिलेख में यापनीय संघ कोटिमडुवगण, अर्हन्नन्दीगच्छ के जिननन्दि मुनोश्वर के शिष्य १. जैनशिलालेखसंग्रह, भाग २, ले० क्र० १८२ २. वही, भाग २, ले० ऋ० १८२ ३. वही, भाग ४, ले० क्र० २०९ ४. Karnataka Inscriptions Vol. I (1941) p. 75-76 ५. उद्धृत-यापनीय और उनका साहित्य, पृ० ७४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002068
Book TitleJain Dharma ka Yapniya Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1996
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Religion
File Size10 MB
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