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________________ यापनीय साहित्य : २११ पंचास्तिकाय (१११ ) में तीन स्थावरों की चर्चा की हैं, वहीं अन्य आचार्यों ने पाँच की चर्चा की है । इसी प्रकार श्वेताम्बर परम्परा के प्राचीन ग्रन्थों में भी, तीन स्थावरों को तथा पाँच स्थावरों की— दोनों मान्यताएँ उपलब्ध होती हैं । अतः ये तथ्य विमलसूरि और उनके ग्रन्थ की परम्परा के निर्णय का आधार नहीं बन सकते । इस तथ्य की विशेष चर्चा हमने तत्त्वार्थसूत्र की परम्परा के प्रसंग में की है, साथ ही एक स्वतन्त्र लेख भी श्रमण अप्रैल-जून ९३ में प्रकाशित किया है, पाठक इसे वहाँ देखें । ५ - कुछ विद्वानों ने यह निष्कर्ष निकाला है कि पउमचरियं में १४ कुलकरों की अवधारणा पायी जाती हैं ।" दिगम्बर परम्परा द्वारा मान्य ग्रन्थ तिलो पण्णत्ती में भो १४ कुलकरों की अवधारणा का समर्थन देखा जाता है जबकि श्वेताम्बर मान्य जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति १५ कुलकरों की चर्चा करती है अतः यह ग्रन्थ दिगम्बर परम्परा का होना चाहिये । किन्तु हमें स्मरण रखना चाहिये कि जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में अन्तिम कुलकर के रूप में ऋषभ का उल्लेख है । ऋषभ के पूर्व नाभिराय तक १४ कुलकरों की अवधारणा तो दोनों परम्पराओं में समान है । अतः यह अन्तर ग्रन्थ के सम्प्रदाय के निर्धारण में महत्वपूर्ण नहीं माना जा सकता है । पुनः जो कुलकरों के नाम पउमचरियं में दिये गये है उनका जम्बुद्वीपप्रज्ञप्ति और तिलोयपण्णत्त दोनों से ही कुछ अंतर है । ६ - पउमचरियं के १४ वें अधिकार की गाथा ११५ में समाधिमरण को चार शिक्षाव्रतों के अन्तर्गत परिगणित किया गया है, किन्तु * १. पउमचरियं ३ / ५५-५६ २. तिलोयपण्णत्ति, महाधिकार गाथा- ४२१ ( जोवराज ग्रन्थमाला शोलापुर ) । ३. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, वक्षस्कार २ । ४. पंच य अणुव्वयाइं तिष्णेव गुणव्वयाईं भणियाई । सिक्खावयाणि एत्तो चत्तारि जिणोवइद्वाणि ॥ थूलयरं पाणिवहं मूसावार्य अदत्तदाणं च । परजुवईण निवित्ती संतोसवयं च पंचमयं ॥ दिसिविदिसाण य नियमो अणत्थदंडस्स वज्जणं चेव । उपभोगपरीमाणं तिण्णैव गुणव्वया एए ॥ सामाइयं च उववास -पोसहो अतिहिसंविभागो य । अंते समाहिमरणं सिक्खासुवयाइ चत्तारि ॥ Jain Education International - पउमचरियं १४ / ११२-११५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002068
Book TitleJain Dharma ka Yapniya Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1996
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Religion
File Size10 MB
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