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________________ मूल षट्खण्डागम और श्वेताम्बर आगम निटकता है उसे निम्न तुलनात्मक विवरणों से सकता है प्रज्ञापना सूत्र समयं वक्कंताणं समयं प्रज्ञापना और षट्खण्डागम स्थानांग आणुग्गहणं समयं षट्खण्डागम सूत्र १२४ समगं वक्कंताणं समगं तेसि सरीरणिप्पत्ती | समगं च अणुग्गहणं समगं उस्सासणिस्सासो || प्रज्ञापना सूत्र यापनीय साहित्य : १०५ साहित्य से किस प्रकार सम्यक रूप से जाना जा समयं तेसि सरीरनिव्वत्ती । ऊसासनीसासे ।। ९९॥ एक्क्स्स उ जं गहणं बहूण साहारणाण तं चेव । जं बहुयाणं गहणं समासओ तं पि एगस्स || १०० || षट्खण्डागम सूत्र १२३ एयस्स अणुग्गहणं बहूण साहारणाणमेयस्स । एयस्स जं बहूणं समानदो तं पि होदि एयस्स ॥ प्रज्ञापना सूत्र साहारणमाहारो साहा रणजीवाण षट्खण्डागम सूत्र १२२ साहारणमाहारो साहारणजीवाण Jain Education International साहारणमाणुपाणगहणं साहारणलक्खणं साहारणमाणपाणगहणं साहारणलक्खणं स्थानांग और षट्खण्डागम च । एयं ॥ १०१ ॥ च । मणसा वयसा कारण वावि जुत्तस्स विरियपरिणामो । जीवस्स अप्पणिज्जो स जोगसन्नो जिणक्खाओ || For Private & Personal Use Only भणिदं ॥ - स्थानांग स्थान ३, पृ० १०१ www.jainelibrary.org
SR No.002068
Book TitleJain Dharma ka Yapniya Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1996
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Religion
File Size10 MB
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