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________________ ४०७ धातुवर्णादेश (२) समए एलगच्छपुरपहे पट्टिया । सो वि खुडओ तिसाए अभिभूओ सणियं सणियमेइ । सो वि से खंतओ सिणेहाणुरागेण पच्छओ एइ । साहुणो वि पुरओ वच्चंति । अंतरा य नई समावडिया। खंतएण भणियं-एहि पुत्त ! पियसु पाणियं । नित्थरेसु आवइं, पच्छा आलोएज्जासि । सो न इच्छइ । खंतो नई उत्तिन्नो, चितइ य ओसरामि मणागं जावेस खुडओ पाणियं पियइ । मा मम आसंकाए न पाहित्ति एगते पडिच्छइ जाव खुड्डो पत्तो नई । दढव्वयाए सत्तसारयाए ण पीयं । अन्ने भण्णंति-अईववाहिओ हं तं पिबामि पाणियं । पच्छा गुरुमूले पायच्छित्तं पडिवज्जिस्सामि त्ति उक्खित्तो जलंजली। अह से चिंता जाया। कहमेए हलाहलए जीवे पिवामि । जओ एगम्मि उदबिंदुम्मि, जे जीवा जिणवरेहिं पन्नत्ता। ते पारेवयमेत्ता, जंबूद्दीवे ण माएज्जा ॥१॥ सो अइसंविग्गेण न पीयं, उत्तिन्नो नई। आसाए छिन्नाए नमोक्कारं झायंतो सुहपरिणामो कालगओ देवेसु उववन्नो। प्राकृत में अनुवाद करो एक समय एक बहुत बडा विद्वान् जो गरीब था, राजा के घर खाना खाने के लिए गया। फटे वस्त्रों से सज्जित होने के कारण राजा ने एक भी शब्द स्वागत में नहीं कहा। पंडित ने शीघ्र ही इसे समझ लिया। इस प्रकार के व्यवहार का कारण मेरे ये वस्त्र हैं। दूसरे दिन वह अच्छे वस्त्रों से भूषित होकर उसी सज्जन के घर गया । राजा ने उसका स्वागत किया और आदर दिया। वह उन्हें भोजनगृह में ले गया। भोजन करने के पहले ही अतिथि ने अपने ऊपर के वस्त्रों को पृथ्वी पर फैला दिया और तीन मुट्ठी भात उन पर फेंक दिया। जब ब्राह्मण से पूछा गया कि आपने ऐसा क्यों किया? तब उसने उत्तर दिया-कल मैं आपके पास गंदे वस्त्रों में आया था। आपने मुझे कुछ शब्दों के योग्य भी न समझा। लेकिन आज इन वस्त्रों के कारण ही आपने मुझे आदर दिया है। प्रश्न १. सृज, शक्, स्फुट, चल, पमील-इन धातुओं के अन्त्य वर्ण को क्या ___ आदेश होता है ? उदाहरण सहित बताओ। २. धातु के अन्त्य उवर्ण और ऋवर्ण को क्या आदेश होता है। ३. रुस् आदि और वृष् आदि धातुओं को क्या आदेश होता है ? सोदाहरण बताओ। ४. किन धातुओं के अंत में णकार का आगम होता है और दीर्घस्वर ह्रस्व हो जाता है ? ५. नीचे लिखी धातुएं किन-किन अर्थों में प्रयुक्त होती हैं ? बलि, कलि, रिग, कांक्षति, फक्क, पडिवाल । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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