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________________ विजयोदया टीका ८८७ पंडितमरणं । एवं पण्डितमरणं सविकल्पं सविस्तरं व्यावणितं वक्ष्यामि बालपण्डितमरणमित ऊर्ध्वं संक्षेपेण ।।२०६७ - २०७१ ॥ देसेक्कसविरदो सम्भादिट्ठी मरिज्ज जो जीवो । तं होदि बालपंडिदमरणं जिणसासणे दिडं ||२०७२॥ 'देसिक्कदेसंविरदो' सर्व्वा संयम प्रत्याख्यानस्यासमर्थः हिंसाद्येक देशाद्विरतः स्थूलभूत प्राणातिपातादिपञ्चकाद्देशविरत इत्युच्यते । एकदेशविरतो नाम देशविरमणेऽपि एकदेशाद्व्यावृत्तः सम्यग्दृष्टिय म्रियते तस्य तद्वालपण्डितमरणं ॥ २०७२ ॥ एतदेव स्पष्टयति पंचय अणुव्वदा सत्तयसिक्खाउ देसजदिधम्मो | सव्वेण य देसेण य तेण जुदो होदि देसजदी ||२०७३॥ 'पंच य अणुब्वाई' पञ्चाणुव्रतानि शिक्षाव्रतानि वा सप्त प्रकाराणि देशयतेर्धर्मः । तेन समस्तेन धर्मेण युतः स्वशक्त्या वा तदेकदेशेन युतोऽपि देशयतिरेव । द्वादशविधगृहिधर्मप्रत्यायनपराणि सूत्राण्युत्तराणि प्रसिद्धार्थानि ||२०७३॥ Jain Education International पाणवघमुसावादादत्तादाणपरदारगमणेहिं । अपरिमिदिच्छादो वि अ अणुव्वयाई विरमणाई || २०७४ || जं च दिसावेरमणं अणत्थदंडेहिं जं च वेरमणं । देसावगासियं पिय गुणव्वयाइं भवे ताई || २०७५।। पण्डितमरणका कथन करेंगे || २०७१ || गा०-टी० – जो समस्त असंयमका त्याग करनेमें असमर्थ है स्थूल हिंसा, स्थूल झूठ, स्थूल चोरी, स्थूल कुशील और स्थूल परिग्रह आदि पाँच पापोंका त्याग करता है उसे देशविरत कहते हैं । और जो देशविरंति के भी एक देशसे विरत होता है अर्थात् अपनी शक्तिके अनुसार हिंसादिका त्याग करता है ऐसा सम्यग्दृष्टि एक देशविरत कहा जाता है । इस प्रकार जो समस्त या एकदेश गृहस्थ धर्मका पालक श्रावक होता है उसके मरणको जिनागम में वालपंडितमरण कहा है ||२०७२ || उसीको स्पष्ट करते है गा०-- पांच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत ये देशसंयमी श्रावकका धर्म है । जो उस सम्पूर्ण श्रावक धर्मका पालक है अथवा अपनी शक्तिके अनुसार उसके एक देशका पालक है वह भी देशसंयमी ही है ||२०७३|| आगे वारह प्रकारके गृहीधर्मको कहते हैं जो प्रसिद्ध हैं गा - हिंसा, असत्य, बिना दी हुई वस्तुका ग्रहण, पर स्त्री गमन और इच्छाका अपरिमाण इनसे विरतिरूप पांच अणुव्रत हैं ||२०७४ || गा०-दिग्विरति, अनर्थदण्डविरति, देशावकाशिक ये तीन गुणव्रत हैं ||२०७५।। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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