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________________ विजयोदया टीका ८८१ 'इहलोगे परलोगे' इह परत्र च जीविते मरणे सुखे दुःखे च अप्रतिबन्धो विहरति जित दुःखपरिश्रमः घृतिमान् ॥२०४५ ।। वायणपरियदृणपुच्छणाओ मोचूण तघय धम्मथुदिं । सुत्तत्थ पोरिसीसु विसरेदि सुत्तत्थमेयमणो ||२०४६ ॥ 'वायणपरियहणपुच्छणाओ' वाचनां परिवर्तनं, प्रश्नं च मुक्त्वा च तथा धर्मोपदेशं सूत्रस्यार्थस्य वा स्मरत्येकचित्तः || २०४६ ॥ एवं अट्ठवि जामे अनुवट्टो तच्च ज्झादि एयमणो । जदि आधच्चा णिद्दा हविज्ज सो तत्थ अपदिण्णों ॥। २०४७ || 'एवं अट्ठवि जामे' एवमेवाष्टसु यामेषु निरस्तशयन क्रियो घ्यात्येक चित्तः, यद्याहत्य निद्रा भवेत् तत्र अप्रतिज्ञोऽसौ || २०४७॥ सज्झायकालपडिलेहणादिकाओ ण संति किरियाओं । जम्हा मसाणमज्झे तस्स य झाणं अपडिसिद्ध ॥२०४८|| 'सज्झायका ? पडिलेहणादिकाओ' स्वाध्यायकाल प्रतिलेखनादिकाः क्रिया न सन्ति यस्मात् श्मशानमध्येऽपि तस्य ध्यानं न प्रतिषिद्धं । २०४८ ॥ आवासगं च कुणदे उवधोकालम्मि जं जहिं कमदि । उवकरणंपि पडिलिहइ उवधोकालम्मि जदणाए || २०४९ ।। 'आवासगं च कुणदे' आवश्यकं च करोति कालद्वयेऽपि यस्मिन्काले प्रवर्तते, उपकरणप्रतिलेखनमपि यत्नेन कालद्वये करोति ॥ २०४९|| परलोक, जीवन, मरण, सुख और दुःखमें रागद्व ेष रहित होकर विहरता है अर्थात् न जीवन आदिसे राग करता है और मरण आदिसे द्वेष करता है || २०४५।। गा॰—स्वाध्यायके पाँच भेदोंमेंसे वाचना, आम्नाय, पृच्छना और धर्मोपदेशको त्यागकर वह अस्वाध्यायकालमें भी एकाग्रमनसे सूत्रके अर्थका ही अनुचिन्तन करता है । अर्थात् सतत अनुप्रेक्षारूप स्वाध्यायमें ही लीन रहता है || २०४६|| Jain Education International गा० - इस प्रकार वह दिन रातके आठों पहरोंमें निद्राको त्यागकर एकाग्र मनसे ध्यान करता है । यदि कभी बलात् निद्रा आ जाती है तो सो लेता है || २०४७|| गा० - अन्य मुनियोंकी तरह न तो उनका स्वाध्यायकाल ही नियत होता है और न उन्हें प्रतिलेखना आदि क्रिया करना ही आवश्यक होता है । उनके लिये स्मशानमें भी ध्यान करना निषिद्ध नहीं है || २०४८|| गा०- - किन्तु दिन रातमें जब जो आवश्यक करनेका विधान है वह अवश्य करते हैं और सावधानता पूर्वक दोनों कालोंमें अपने उपकरणोंकी प्रतिलेखना भी करते हैं || २०४९|| For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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