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________________ विजयोदया टीका ५०५ 'सच्चं वृत्तूण' सत्यवचनमुक्त्वा । कीदग्भूतं ? 'अवगववोसं' दोषरहितं । क्व? 'जणस्स मज्झयारम्मि' जनमध्ये । 'पोदि पावदि' परमां प्रीतिं प्राप्नोति, परां 'जसं लभदि' यशश्च लभते । 'जगविस्सुदं' जगति विश्रुतं ।।८३५।। सच्चम्मि तवो सच्चम्मि संजमो तह वसे सया वि गुणा । सच्चं णिबंधणं हि य गुणाणमुदधीव मच्छाणं ॥८३६॥ 'सच्चम्मि संजमो' सत्याधारी तपःसंयमी, शेषाश्च गुणाः । 'सच्चं णिबंधणं गुणाणं' गुणानां निबन्धनं सत्यं । 'मच्छाणं उदधीव' मत्स्यानामुदधिरिव ।।८३६॥ सच्चेण जगे होदि पमाणं अण्णो गुणो जदि वि से पत्थि । अदिसंजदो य मोसेण होदि पुरिसेसु तणलहुओ ॥८३७॥ 'सच्चेण जगे होदि' सत्येन जगति भवति । 'पमाणं' प्रमाणं । यद्यप्यन्यो गुणो नास्ति । अतीव संयतोऽपि सतां मध्ये तृणवल्लघुर्भवति मृषावचनेनेति गाथार्थः ।।८३७॥ होदु सिहंडी व जडी मुंडी वा जग्गओ व 'चीरधरो । जदि भणदि अलियवयणं विलंबणा तस्स सा सव्वा ॥८३८॥ . 'होदु सिहंडी' भवतु नाम शिखावान् । 'जडी मुडी वा' नग्नश्चीवरधरो वा यद्यलीकं वदति तस्य सा सर्वा विलम्बना ॥८३८।। जह परमण्णस्स विसं विणासयं जह व जोव्वणस्स जरा । . तह जाण अहिंसादी गुणाण य विणासयमसच्चं ।।८३९॥ 'जह परमण्णस्स' यथा परमान्नस्य विनाशकं विषं । यथा वा जरा यौवनस्य, तथा जानीहि अहिंसादिगुणानां विनाशकं असत्यं ।।८३९॥ गा०–जनसमुदायके बीच में दोषरहित सत्यवचन बोलनेसे मनुष्य जनताका प्रेम तथा जगत्में प्रसिद्ध उत्कृष्ट यश पाता है ।।८३५।। . गा०-तप, संयम तथा अन्यगुण सत्यके आधार हैं। जैसे समुद्र मगरमच्छोंका कारण है उसमें मगरमच्छ पैदा होते और रहते हैं वैसे ही सत्य गुणोंका कारण है ।।८३६।। - गा०-यदि मनुष्यमें अन्य गुण न हों तब भी वह एक सत्यके कारण जगमें प्रमाण माना जाता है। अति संयमी भी मनुष्य यदि असत्य बोलता है तो सज्जनोंके मध्यमें तृणसे तुच्छ होता है ।।८३७।। गा-भले ही मनुष्य शिखाधारी हो, जटाधारी हो, सिर मुड़ाए हो, नंगा रहता हो या चीवर धारण किये हो, यदि वह झूठ बोलता है तो यह सब उसकी विडम्बनामात्र है ।।८३८॥ ___ गा-जैसे विष उत्तमोत्तम भोजनका विनाशक है, बुढ़ापा यौवनका विनाशक है वैसे ही असत्य वचन अहिंसा आदि गुणोंका विनाशक है ।।८३९॥ . १. चीवर-मु० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001987
Book TitleBhagavati Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivarya Acharya
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2004
Total Pages1020
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Religion
File Size23 MB
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