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________________ श्री सुखानन्द जी का-प्रवास और भैरवी-दीक्षा [६३ कहो प्राज बारह बजे के शुभ मुहूर्त में इस लड़के को गुरु मंत्र देकर दीक्षा देना है। इसलिये उसका इन्तजाम करे । ___ उसके बाद तुरन्त आरती का कार्यक्रम शुरू हुआ, जो आध पौन घन्टे तक चला, उस समय करीब आठ बजे होंगे, फिर कामदार जी हमको अपनी छोलदारी में ले गये और मुझसे कहने लगे "क्या तुम खाखी महाराज के चेले बनना चाहते हो?" __ मैंने कहा-"जैसा बाबाजी का हुकुम हो।" तब कामदारजी बोले- "बाबाजी के चेले बनने के लिये तो तुमको सिर मुंडाना होगा। सारे बदन पर भभूत लगानी होगी। एक मात्र लंगोट पहननी होगी, हाथ में लोहे का चिमटा रखना होगा। दिन में तीन बार स्नान करना होगा। सुबह शाम देव-पूजा करनी होगी और फिर जैसे खाखी महाराज शिक्षा देंगे, उसे धारण करनी होगी।' जवाब में मैंने कहा- ''खाखी महाराज जैसा कहेंगे वैसा मैं करूंगा।" फिर कामदारजी ने कहा-"खाखी महाराज का एक बड़ा चेला है, जो बहुत दुष्ट विचार का है और उसका चरित्र भी खराब है। इसलिये खाखी महाराज उससे नाराज रहते हैं और कुछ बरसों से उसको अपने पास नहीं आने देते। वह बारबार खाखी महाराज को धमकियाँ देता रहता है । खाखी महाराज अब काफी वृद्ध हो गये हैं, अतः इनके मन में ऐसा लगता रहता है कि कोई अच्छा सुयोग्य शिष्य मिल जाय तो उसको अपना उत्तराधिकारी बनावे। अभी और दो चार शिष्य जो इनके साथ हैं, उनमें कोई अच्छा बुद्धिमान और खानदान कुलका नहीं है । इसलिये अगर तुम पर खाखी महाराज की अच्छी कृपा हो गई तो तुम बड़े महन्त बन जाओगे । ऐसी बातें कहते हुए उन्होंने एक नाई को बुलवा भेजा । दूसरी तरफ खाखी महाराज के पास रहने वाला जो एक प्रोढ उम्र वाला दीक्षा धारी शिष्य था और जिसके पास रुपये पैसे आदि रहते थे उसको बुलाया और बोले-"आज ही बारह बजे के समय इस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001967
Book TitleJinvijay Jivan Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherMahatma Gandhi Smruti Mandir Bhilwada
Publication Year1971
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size11 MB
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