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________________ संग्रहालयों में कलाकृतियाँ [भाग 10 बंगाल की प्रतिमाओं में दर्शाये जाते हैं । वृक्ष के ऊपर दो तथा पादपीठ के सम्मुख-भाग पर पाँच प्राकृतियाँ भी अंकित हैं। यह प्रतिमा लंबाकार है तथा शीर्ष पर नुकीली हो गयी है जिससे वह ग्यारहवीं शताब्दी की प्रतीत होती है (चित्र ३३६ क)। ऋषभनाथ (७४.६५; ऊंचाई ५७ सें. मी.) : उड़ीसा से प्राप्त इस प्रतिमा में तीर्थंकर एक चौकोर पादपीठ पर ध्यान-मुद्रा में बैठे हुए हैं। तीर्थंकर के सिर पर एक विशद जटा-मुकुट है तथा लहरदार केश-गुच्छ दोनों कंधों पर लहरा रहे हैं। उनके दोनों ओर एक-एक पूर्ण विकसित पद्म-पुष्प अंकित हैं। यह प्रतिमा बारहवीं शताब्दी की है। तीर्थंकर-प्रतिमा (७४.८७; ऊंचाई ४८ सें. मी.) : उड़ीसा-कला-शैली की यह अत्युत्तम प्रतिमा एक अचिह्नित तीर्थंकर की है जो धड़-भाग के नीचे से खण्डित है। यह प्रतिमा कायोत्सर्ग-मुद्रा में खड़े तीर्थंकर की थी। प्रतिमा के ऊपरी सिरे पर एक त्रि-तोरण है जिसके नीचे तिहरे छत्र हैं जो तीर्थंकर के शीर्ष-भाग के ऊपर हैं। तोरण आदि पत्र-पुष्पों की डिजाइन से अलंकृत हैं। तीर्थंकर के बाल छोटे-छोटे छल्लों में प्रसाधित हैं तथा सिर के ऊपरी भाग में शंक्वाकार उभारदार रचना का रूप ग्रहण किये हुए हैं। तीर्थंकर के पार्श्व में दोनों ओर उड़ते हुए गंधों, संगीतज्ञों एवं नव-ग्रहों का अंकन है। इस प्रतिमा का समय बारहवीं शताब्दी निर्धारित किया जाता है। दक्षिणापथ ऋषभनाथ (१३५३; ऊँचाई ६१.५ सें. मी.): काले पत्थर में उत्कीर्ण इस प्रतिमा में तीर्थंकर को ध्यान-मुद्रा में बैठे दर्शाया गया है। उनके लहरदार बालों के गुच्छे कंधों पर पड़े हुए हैं तथा वह एक कसा हुआ अंतरीय पहने हुए हैं। वारंगल से प्राप्त इस प्रतिमा का समय दसवीं शताब्दी निर्धारित किया जाता है। स्थापत्यीय पट्ट (५८.९/१; ऊँचाई ८६ सें. मी.) : इस पट्ट में सहस्र-कूट का अंकन है। यह मण्डपाकार है और शीर्ष भाग शंक्वाकार है जो संकीर्ण होती पट्टियों तथा एक आमलक से मण्डित है। इस मण्डप के चारों ओर कायोत्सर्ग-मुद्रा में खड़े तीर्थंकरों की एक-एक प्रतिमा का अंकन है। इसके ऊपर चारों दिशाओं में क्षतिजिक चित्र हैं जिसमें क्रमशः, चार, तीन, और एक तीर्थंकर-प्रतिमाएँ ध्यान-मुद्रा में बैठी हुई दिखाई गयी हैं। यह पट्ट गहरे भूरे पत्थर से निर्मित है। इसके लिए दसवीं शताब्दी, चालुक्य-काल निर्धारित किया जाता है। तीर्थंकर प्रतिमा (५६.१५३/१४६; ऊँचाई १.५६ मी.): यह प्रतिमा सिंहासन पर ध्यानमुद्रा में बैठे हुए एक तीर्थकर की है जिनके पीछे प्रभा-मण्डल अंकित है। तीर्थंकर के वक्ष पर दायीं और श्रीवत्स-चिह्न अंकित है। भामण्डल के समीप चमरधारी सेवक खड़े हैं। तीर्थंकर के ऊपर घुमावदार तोरण का अंकन है । दुर्दीत सिंह के ऊपर मकर-मुख तथा तीर्थंकर के पार्श्व में दोनों ओर सिंह अंकित हैं । यह प्रतिमा विजयनगरकालीन, पंद्रहवीं शताब्दी की है (चित्र ३३६ ख) । 574 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001960
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size24 MB
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