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________________ प्रण्याय 31] लघुचित्र जिसमें ऊपरी सतह श्वेत रंग में और निचली सतह गहरे नीले रंग में चित्रित है (चित्र २८१ ख)। आकाश को प्रायः लहरदार पट्टी या घुमावदार छल्ले के रूप में या चित्र के ऊपरी कोने में स्थान ग्रहण किये हुए अंकित किया गया है। वृक्ष को उसके तने सहित भीतर की ओर झुका हुआ दिखाया गया है। उसकी पर्णावली को कवि रइधू-कृत तीनों पाण्डुलिपियों के चित्रों की अपेक्षा नया मंदिर स्थित महा-पुराण के चित्रों की भाँति अंकित किया गया है। कहीं-कहीं पत्तों को पत्तियों के एक विशाल समूह के आकार में अंकित किया गया है। यह पाण्डुलिपि ग्वालियर और दिल्ली--इन दोनों में से किसी एक स्थान पर चित्रित हुई हो सकती है। अधिकतर संभावना दिल्ली में चित्रित होने की है क्योंकि धारीदार या चौखाने की रूप-योजना-युक्त वस्त्र तथा चित्र-संयोजन में महराबदार रूप में झुके हुए वृक्षों का अंकन आदि कुछ ऐसी विशेषताएं हैं जो नया मंदिर स्थित महा-पुराण के चित्रों की विशेषताओं के अधिक निकट हैं। __ कवि रइधू-कृत इन चारों कृतियों की सचित्र पाण्डुलिपियों का समूह उत्तर-भारत में विकसित चित्र-परंपरा का ही मात्र अंकन प्रस्तुत नहीं करता अपितु इस काल की रचित माण्डू की कल्प-सूत्र और जौनपुर की कल्प-सूत्र आदि जैसी अन्य पाण्डुलिपियों की मानव-आकृतियों के अंकन और उनके धोती एवं उत्तरीय पहनने तथा नारियों द्वारा साड़ियों के पहनने के ढंग आदि की शैलीगत समानता को भी प्रदर्शित करता है। इन समानताओं से भी अधिक कुछ ऐसी समानताएँ, जो पहचानी जा चुकी हैं, सिकंदर-नामा, भारत कला भवन के लौर-चंदा और तूबिन्गेन के हम्जा-नामा आदि पाण्डुलिपियों के चित्रों में पायी जाती हैं। ये विशेषताएं मुख्यतः लंबे जामा, कुरता-पैजामा जैसी वेश-भूषा तथा साड़ी के बाँधने के ढंग में देखी जाती हैं, जिसमें साड़ी की चुन्नट आगे की मोर निकली हुई दर्शायी गयी है। बाद की पाण्डुलिपियों के इस समूह में एक हिन्दू व्यक्ति की आकृति में एक विजातीय प्रकार का अंकन है जो कि पासणाह-चरिउ तथा तिथि-रहित जसहर-चरिउ' की पाण्डुलिपि-चित्रों में अंकित प्राकृतियों से समानता रखता है। इन दोनों प्रकार की पाण्डुलिपियों के समूह में जो समानताएँ हैं वे इस पूर्वोक्त मत का समर्थन करती हैं कि सिकंदर-नामा आदि पाण्डलिपियों के समूह का चित्रांकन दिल्ली और उसके समीप हुआ होगा। इसके आधार पर यह सुझाव दिया जाना भी संभव है कि इनका रचनाकाल पंद्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध की अपेक्षा लगभग 1 रंगीन चित्र 33, 34 तथा चित्र 280 क, ख की तुलना खण्डालावाला और मोतीचंद्र, पूर्वोक्त, 1968, चित्र 2, 4 और रेखाचित्र 11, 15-18, 33, 36, 39, 43, 44 से कीजिए. 2 रंगीन चित्र 32, 34, 35 की तुलना पूर्वोक्त, रेखा चित्र 90, 101, 102-104, 109, 117, 118, 125 से कीजिए. 3 रंगीन चित्र 33 और चित्र 281 क, ख की तुलना पूर्वोक्त, रेखाचित्र 99, 101-103, 108 से कीजिए. 4 पूर्वोक्त, पृ 50, 53. 431 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001960
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size24 MB
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