SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्याय 19 ] दक्षिण भारत परंपरा के नमस्कार-मण्डप से मिलता-जुलता है। किन्तु केरल की मंदिर-शैली के विपरीत इस मंदिर की पाषाण-निर्मित छत किंचित् ढलुवाँ है जिसपर दो अस्पष्ट स्तूपिकाएं निर्मित हैं--एक गर्भगृह पर और दूसरी महा-मण्डप पर । कदाचित् इस मंदिर की मूल अधिरचना पूर्ण रूप से नष्ट हो गयी है। अपने मूल रूप में यह मंदिर एक स्तंभावलि से जुड़ा रहा होगा जिसके अधिकतर स्तंभों के कट्ट अष्टकोण और शदुरम चतुष्कोण हैं। महा-मण्डप के स्तंभ अपेक्षाकृत अधिक विकसित हैं और उनके शुण्डाकार दण्ड और अलंकरण विजयनगर-परंपरा का स्मरण दिलाते हैं । यद्यपि गर्भगृह में अब कोई मूर्ति नहीं है, किन्तु उसके प्रवेश-द्वार के ललाट-बिम्ब पर एक पद्मासन तीर्थंकर-मूर्ति है । अर्ध-मण्डप के सरदल पर भी एक ऐसी ही मूर्ति उत्कीर्ण है। दशाब्दियों पूर्व सुल्तान की बैटरी के निकट अनेक खण्डित जैन मूर्तियाँ प्राप्त हुई थीं, किन्तु यह कह पाना कठिन है कि वे सब उपर्युक्त मंदिर की ही मूर्तियाँ थीं। कदाचित् ग्यारहवीं-बारहवीं शताब्दी की एक कायोत्सर्ग-तीर्थंकर-मूर्ति इनमें से एक है। इसके मस्तक पर छत्रत्रय है और केश घुघराले हैं। यह निस्संदेह तोरण पर उत्कीर्ण मूर्ति है क्योंकि इसके चारों ओर प्रवेश-द्वार के तोरण की आकृति है । उपलब्ध सामग्री में एक पट्टिका के भी बहुत से खण्ड हैं जिनपर पंक्तियों में लघु तीर्थंकरमूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। इसमें संदेह नहीं कि ये खण्ड किसी चतुर्विशतिपट्ट के हैं। आसीन मूर्तियों में अधिकांश वज्रपर्यंक-मुद्रा में हैं और उनमें से एक के पादपीठ के मध्य में सिंह अंकित है। हरिबिष्णु सरकार 237 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001959
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy