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________________ २३८० १. फासओ - १. कक्खडफासपरिणया वि, २. मउयफासपरिणया वि, ३. गरूयफासपरिणया वि, ४. लहुयफासपरिणया वि, ५. सीयफासपरिणया वि, ६. उसिणफासपरिणया वि, ७. निद्धफासपरिणया वि, ८. लुक्खफासपरिणया वि' । ४. जे संठाणओ चउरंससंठाणपरिणया ते वण्णओ - १. कालवण्णपरिणया वि, २. नीलवण्णपरिणया वि, ३. लोहियवण्णपरिणया वि, ४. हालिद्दवण्णपरिणया वि, ५. सुक्किलवण्णपरिणया वि । गंधओ - १. सुब्भिगंधपरिणया वि, २. दुब्भिगंधपरिणया वि । रसओ - १. तित्तरसपरिणया वि, २. कडुयरसपरिणया वि, ३. कसायरसपरिणया वि, ४. अंबिलरसपरिणया वि, ५. महुररसपरिणया वि । फासओ - १. कक्खडफासपरिणया वि, २. मउयफासपरिणया वि, ३. गरूयफासपरिणया वि, ४. लहुयफासपरिणया वि, ५. सीयफासपरिणया वि, ६. उसिणफासपरिणया वि, ७. निद्धफासपरिणया वि, ८. लुक्खफासपरिणया विरे । ५. जे संठाणओ आयतसंठाणपरिणया ते वण्णओ - १. कालवण्णपरिणया वि, २. नीलवण्णपरिणया वि, ३. लोहियवण्णपरिणया वि, ठाणओ भवे तसे, भइए से उ वण्णओ । गंधओ रसओ चेव, भइए फासओ विय ॥ Jain Education International - उत्त. अ. ३६, गा. ४४ For Private २. तेस्रो स्पर्शथी - १. ईश स्पर्श २. मृहुस्पर्श - परिशता छे, 3. गुरुस्पर्श - परिशत पड़ा छे, ४. लघुस्पर्श- परिशत भए। छे, 4. शीतस्पर्श - परिक्षत पए छे, ५. उष्ण स्पर्श - परिात पा छे, ७. स्निग्धस्पर्श - परिक्षत पण छे, ८. रुक्षस्पर्श - परिक्षत पड़ा छे. ૪. જેઓ સંસ્થાનથી ચતુરસ્ત્ર સંસ્થાન - પરિણત છે तेस्रो वर्षाथी - १. द्रृष्णवर्ग - परिक्षत पड़ा छे, २. नीसवर्श - परिशत पए। छे, 3. वर्श- परिशत पा छे, ४. पीतवर्श- परिक्षत पए। छे, દ્રવ્યાનુયોગ ભાગ-૪ परिक्षत पत्र छे, ५. शुडसवर्श - परिक्षत पा छे. तेस्रो गंधथी - १. सुगंध - परिक्षत पए। छे, २. हुर्गंध - परित पड़ा छे. तेस्रो रसथी - १. तिक्तरस परित पड़ा छे, २. उटुरस - परिात या छे, 3. वायरस પરિણત પણ છે, ४. अम्लरस - પરિણત પણ છે, ५. मधुररस - परिक्षत पा छे. तेस्रो स्पर्शथी - १. ईश स्पर्श - परिक्षत पएा छे, - - - Personal Use Only २. मृहुस्पर्श - परिात पए। छे, 3. गु३स्पर्श - परिपात पए। छे, ४. सघुस्पर्श - परिक्षत पए। छे, ५. शीतस्पर्श - परिक्षत पत्र छे, ५. उष्णस्पर्श - परिक्षत या छे, ७. स्निग्धस्पर्श - परिशत भए। छे, ८. रुक्षस्पर्श - परिशत पाए छे. ૫. જેઓ સંસ્થાનથી આયત સંસ્થાન - પરિણત છે - तेस्रो वर्षाथी - १. द्रृष्णवर्श परिक्षत भए। छे, २. नीसवर्ष परिक्षत पए। छे, 3. रक्तवर्ग - परिक्षत पए। छे, संठाणओ य चउरंसे, भइए से उ वण्णओ । गंधओ रसओ चेव, भइए फासओ विय ।। - उत्त. अ. ३६, गा. ४५ www.jainelibrary.org
SR No.001951
Book TitleDravyanuyoga Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year2004
Total Pages814
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_related_other_literature
File Size22 MB
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