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________________ परिशिष्ट-भाग : 381 अहं अलसी अलाउं अलाऊ अलाबू अलाहि अलिअं अल्लं अल्लं अवऊढो अवक्खन्दो अवगूढो अवजसो अवज्जं अवडो अवद्दाल अवयवो अवयास अवयासो अवरण्हो अवरि अवरि अवरिल्लो अवसद्दो अवहडं अवहं अवहोआसं स्त्री (अतसी) तेल वाला तिलहन विशेष; १-२११ । न. (अलाबुम्) तुम्बीफल; १-६६। स्त्री. (अलाबू:) तुम्बी लता; १-६६। स्त्री. (अलाबूः) तुम्बी-लता १-२३७। अ (निवारण-अर्थ) 'निवारण-मनाई करने अर्थ में; २-१८९। अलीअन (अलीकम्) मृषावाद; झूठ; (वि.)। मिथ्या, खोटा; १-१०१।। वि (आर्द्रम्) गीला, भीजा हुआ; १-८२। न (दिनम्) (देशज) दिन, दिवस; २-१७४। वि (अवगूढः) ढंका हुआ; आलिगित; १-६। पुं. (अवस्कन्दः) शिविर, छावनि, सेना का पड़ाव, रिपु-सेना द्वारा नगर का घेरा जाना; २-४ वि (उपगूढः) आलिंगित; २-१६८। पुं. (अपयशः) अपकीर्ति; १-२४५। न (अवद्यम्) पाप; वि निन्दनीय; २-२४ । पु. (अवटः) कूप, कुंआ; १-२७१। न (अपद्वारम्) छोटी खिड़की; गुप्त द्वार; १-२५४। पु. (अवयवः) गात्र, अंश, विभाग, अनुमान प्रयोग का वाक्यांश; १-२४५। सक. (श्लिष्यति) वह आलिंगन करता है; २-१७४। पु. (अवकाशः) मौका, प्रसंग, स्थान, फुरसत, आलिंगन, १-६, १७२। पु. (अपरान्हः) दिन का अन्तिम प्रहर; २-७५ अ. (उपरि) ऊपर; २-१६६। अ (उपरि) ऊपर; १-२६, १०८। वि (उपरितनः) उत्तरीय वस्त्र, चद्दर; २-१६६ पु. (अपशब्दः) खराब वचन; १-१७२। वि (अपहतम्) छीना हुआ; १-२०६। सर्व (उभयम्) दोनों; युगल; २-१३८। अ (उभय बलं; आर्षे उभयो कालं) दोनों समय; २-१३८ अ (अपि) भी; १-४१॥ न (अविनय) अविनय; २-२०३। अ. (सूचनादि-अर्थ) “सूचना, दुःख, संभाषण, अपराध, विस्मय, आनन्द, आदर, भय, खेद, विषाद और पश्चाताप" अर्थ में; २-२०४। (अस्ति ) वह है; २-४५।। नत्थि (नास्ति) वह नहीं है; २-२०६। सिआ (स्यात्) होवे; २-१०७। सन्तो (सन्तः) अस्ति स्वरूप वाले; १-३७। वि (असहाय) सहायता रहित; १-७९। पुं. (असुकः) प्राण; (न.) चित्त, ताप; १-१७७। वि (असुरी) दैत्य-दानव-संबंधी; १-७९। पुं. (अशोक) अशोक वृक्षः २-१६४। नं. (आस्यम्) मुख, मुँह, १-८४।। न (यथाख्यातम्) निर्दोष चारित्र; परिपूर्ण संयमः १-२४५। सर्व (अहम्); में; १-४०; अहय सर्व (अहं) मैं; २-१९९, २०४।। अहरूटुं पुंन (अधरोष्ठम्) नीचे का होठ; १-८४| अहवा अ. (अथवा) अथवा; १-६७; अहह अ. (अहह) आमन्त्रण, खेद, आश्चर्य, दुःख, आधिक्य, प्रकर्ष आदि अर्थों में प्रयुक्त होता है; २-२१७/ अहाजायं वि. (यथाजातम्) नग्न, प्रावरण रहित; १-२४५। अहाह अ. (अहअह) आमन्त्रण, खेद आदि में प्रयुक्त होता है; २-२१७। अहिआइ अक (अभियाति) सामने आता है; १-४४। अहिज्जो अहिण्णू पुं. (अभिज्ञः) अच्छी तरह से जानने वाला; १-५६; २-८३। अहिमञ्जू अहिमंजू पु. (अभिमन्यु :) अर्जुन का पुत्र अभिमन्युः २-२५। अहिरीओ वि. (अर्हीकः) निर्लज्ज, बेशरम; २-१०४। अहिवन्नू पु. (अभिमन्यु:) अर्जुन का पुत्र अभिमन्यु; १-२४३) अहो अ (अहो) अरे; विस्मय, आश्चर्य, खद, शोक-आमन्त्रण, संबोधन, वितर्क, प्रशंसा, असूया, द्वेष आदि अर्थों में प्रयुक्त किया जाने वाला अव्यय; १-७, २-२१७) आ आइरिओ पु. (आचार्यः) गण का नायक; आचार्य १-७३। आउज्ज पु.न. (आतोद्यम्) वाद्य, बाजा; १-१५६। आउण्टणं न (आकुंचनम्) संकोच करना; १-१७७) आऊ स्त्री (दे) (आपः) पानी, जल; २-१७४। आओ वि (आगतः) आया हुआ; १-२६८| आकिइ स्त्री. (आकृतिः) स्वरूप, आकार;१-२०९। आगओ वि (आगतः) आया हुआ;१-२०९; २६८। आगमण्ण पु. वि (आगमज्ञः) शास्त्रो को जानने वाला; १-५६। आगमिओ पु वि (आगमिकः) शास्त्र-संबंधी, शास्त्र प्रतिपादित; शास्त्रोक्त वस्तु को ही मानने वाला; १-१७७ आगरिसो पु. (अकर्षः) ग्रहण, उपादान; खींचाव; १-१७७। आगारो पु. (आकारः) अपवाद; इंगित; चेष्टा विशेष आकृति; रूप; १-१७७। आढत्तो वि (आरब्धः) शुरू किया हुआ; प्रारब्ध २-१३८ आढिओ वि (आदृतः) सत्कृतः सम्मानित; १-१४३। आणत्ती स्त्री. (आज्ञप्तिः) आज्ञा; हुक्म; २-९२। आणवणं न (आज्ञापन) आज्ञा, आदेश, फरमाइश; २-९२ आणा स्त्री. (आज्ञा) आज्ञा, हुक्म; २-८३,९२। आणालक्खम्भो पु. (आलानस्तम्भः) जहां हाथी बांधा जाता है वह स्तम्भ; २९७, ११७/ आणालो. पु. (आलानः) बंधन; हाथी बांधने की रज्जु; डोरी २-११७ अवि अविणय अव्वो अस् अस्थि असहेज्ज असुगो असुरी असोअ अस्सं अहक्खायं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001942
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 1
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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