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________________ उपदेशसंग्रह-१ १५५ जगह आयी है। किसीको पता नहीं है। पहचानने पर छुटकारा है। बातें करनेसे काम नहीं होता। मात्र उसीकी लय लगी रहे और उसीकी इच्छा रहे, यही भावना करनी चाहिये । इसमें दूसरेका काम नहीं है। स्वयंको करना है और अपने लिये ही करना है। विनय वस्तुको प्राप्त करवाती है, और भक्ति-ये दो महान वस्तु हैं, मुख्य हैं। महावीर स्वामीने गौतम गणधरसे कहा *"संजोगा विप्पमुक्कस्स अणगारस्स भिक्खुणो। विणयं पाउ करिस्सामि अणुपुट्विं सुणेह मे ॥' (उत्तराध्ययन सूत्र प्र. अ. गाथा-१) “विनय' सुनो, सुनो। कमी योग्यताकी है। इसे पूरी किये बिना छुटकारा नहीं है। छोड़ना पड़ेगा। छोड़कर आओ। अपना सयानापन छोड़ दो। ता.७-११-३५, सायंकाल वेदनीयके दो भेद : साता वेदनीय और असाता वेदनीय । वह किसको है? देहको? स्याद्वाद है। एक भोगनेसे जाती है और एक छोड़नेसे जाती है । बाँधे हैं वे भोगते हैं। छोड़ा नहीं है। छोड़े तब कार्य सिद्ध होता है। छोड़ा कैसे जाय? १. मुमुक्षु-कर्तापन मिटे तब । __ प्रभुश्री-यह तो बराबर है। बाप करता है तो बाप भोगता है। २. मुमुक्षु-समभावसे छूटता है। ३. मुमुक्षु-भाव और दृष्टिमें परिवर्तन हो तो छूटता है। प्रभुश्री-सब अज्ञान है । ज्ञान प्राप्त हो तो छूटता है। ज्ञान आये तो वह नहीं रहता। यह विचार किया? मुमुक्षु-जो जागृत हुए हैं और जिन्होंने सत्पुरुषके बोधको सुना है, उन्हें यह विचार आता है। प्रभुश्री-जागृत हुआ कब कहा जायेगा? मुमुक्षु- "कषायनी उपशांतता, मात्र मोक्ष अभिलाष; भवे खेद प्राणीदया, त्यां आत्मार्थ निवास. दशा न एवी ज्यां सुधी, जीव लहे नहि जोग; मोक्षमार्ग पामे नहीं, मटे न अंतर रोग. आवे ज्यां एवी दशा, सद्गुरु-बोध सुहाय; ते बोधे सुविचारणा, त्यां प्रगटे सुखदाय." (श्री आत्मसिद्धि) प्रभुश्री तैयार हो जाओ। 'भूले वहाँसे फिर गिनो।' 'जागे तभीसे सबेरा।' छूटा नहीं है। समकित आये तब छूटता है। यह कर्तव्य है। इसीकी भावना करो। संसारी संबंध, बाल-बच्चे, पैसा-टका आदि सब मिथ्या है। अपना कुछ नहीं है। अपना आत्मा है। ___ * अर्थ–संयोगसे विशेषरूपसे मुक्त और घर-संसारके बंधनसे मुक्त भिक्षुके विनय (आचार) को क्रमपूर्वक प्रगट करूँगा। तुम ध्यानपूर्वक मुझे सुनो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001941
Book TitleUpdeshamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShrimad Rajchandra Ashram Agas
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year2004
Total Pages594
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, sermon, & Rajchandra
File Size13 MB
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