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________________ [२७५ मुहूर्तराज ] इस समस्त विधि को अब प्रक्रिया रूप में देखेंलग्नसाधन प्रक्रिया इष्ट स्थान के उदयमान अय. सायना भोग्यांश मे. २०८ ४ १५ २४ ९ ३०३ १९ २१ क. ३४३ ध. ५० १० उदित सिं.→ ३४७ वृ. क. ३३८ तु. अब २५१ FREE ३०) ३४७ (११ x ३४ ११ x २० x २० ३४४ १० = ३४० ६० = ५/४० के ४० को रहने २२० ६८० दिया और ५ को १२९२ में जोड़ा फिर १२९२ + ५ = १२९७ X ३८ X ३८ ४१८ १२७२ को ११० में ६८० को ४१८ में जोड़ने पर और ६० का भाग ०२४ लगाते हुए ऊपर की संख्या में सम्मेलन करने पर रविभोग्य काल १२९२ २३८/४१/२७/४० हुआ। X १० ११० ३४० ___ अब इष्ट घटी ११ प. ४० की पलें बनाने पर ११ x ६० = ६६० + ४० = ७०० प. हुईं इनमें से रविभोग्य काल घटाने पर (७००-10-/0-10)- (२३८/४१/२७/४०) = ४६१/१८/३२/२० शेष रहे १८/३२/२० का अर्धभाग ९/१६/१० अब शेष ४६१ में से उदित लग्नराशि का आगे का उदयमान ३३८ घटाने पर = ४६१-३३८ = १२३ शेष इष्ट पलें रहीं। इसमें से अग्रिम उदयमान संख्या ३३८ नहीं घटती अतः यह भाजक रूप में मानी गई। ततः १२३ x ३० = ३६९० + ९ = ३६९९ : ३३८ ३३८) ३६९९ (१० ततः प्रथम उदयमान से इष्टपलों में से न घटने योग्य उदयमान तक गिनने पर तुला लग्न आया इसे १०/५६/४० लग्नफल के ऊपर लिखकर इसमें से अयनांशों को घटाने पर ३३८) १९१५६(५६ १६९० २२५६ २०२८ १० | २४ | १६ यह लग्नस्पष्ट हुआ २२८ ५६ । १९ । ४७ । X ६० ४० | ३७ । ३ । १३६८० + १० ३३८) १३६९० (४० १३५२ लग्नस्पष्ट ५ रा. १६ अं. ४७ क.३ वि. १७० ००० १७० शेष ३३८ X६० १९१४० +१६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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